२०१२ के राज्य सभा चुनाव में झारखण्डी नेताओं और यहाँ के राजनीतिक दलों का जो आचरण रहा है उसने देश और देश के बाहर झारखण्ड के वासिन्दों का सर शर्म से झुका दिया है ।झारखण्ड भारत का पहला और अबतक का एक्मात्र राज्य है जहाँ राज्य सभा चुनाव की पूरी प्रक्रिया निरस्त कर दी गयी है । आय कर विभाग की सक्रियता और निर्वाचन आयोग की अनुक्रिया ने बिकाउ झारखण्डी विधायकों का पर्दाफाश कर दिया । सबसे पहले झारखण्ड के सबसे कद्दाबर नेता और संविधान सभा के सदस्य जयपाल सिंह ने कांग्रेस के साथ समझौता कर झारखण्ड के हित के साथ समझौता किया था । बाद में नरसिंह राव की सरकार को बचाने में श्री शिवू सोरेन के नेतृत्व में जे.एम.एम. के चार लोक सभा सद्स्यों के आचरण ने झारखण्डी नेताओं की पहचान बिकाउ नेता के रूप में करा दी थी । जे एम एम रिश्वत काण्ड भारतीय राजनीति के पतन की एक सीढी के रूप में आज भी चर्चित है।
झारखण्ड के साथ नेताओं के धोखे का सिलसिला और आगे बढा जब निर्दलीय मधु कोडा की सरकार कांग्रेस और जेएमएम के समर्थन से बनी और उस सरकार ने लगभग दो सालों तक शासन कर न केवल एक कीर्तिमान बनाया बल्कि झारखण्ड को जिस निर्दयता से लूटा उसकी मिसाल किसी अन्य राज्य मे नहीं है ।
झारखण्ड से राज्य सभा के चुनाव में धन बल की जो भूमिका होती है वह वास्तव में झारखण्ड के नेताओं के बिकाउपन को ही स्पष्ट करता है ।बाहरी अवाँछित तत्त्वों के लिये झारखण्ड चारागाह है । यहाँ के कुछ राजनीतिक दल और अधिकतर विधान सभा सदस्य राज्य सभा चुनाव का इंतजार उसी प्रकार करते हैं जैसे किसान अगहन और बैसाख का तथा शिक्षक उत्तर-पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का । अभी तक का इतिहास बताता है कि इसमें झामुमो की भूमिका सबसे अधिक चिंताजनक रही है । अगर काँग्रेस / भाजपा जैसे अखिल भारतीय राष्ट्रीय दल राज्य सभा में अपना प्रतिनिधित्व बढाना चाहते हैं तो बात समझ में आती है, परन्तु जब झामुमो या झाविमो राज्य सभा में जाने के लिये एडी-चोटी का पसीना बहाते हैं तब उनके उद्देश्य सन्देह के घेरे में आ जाते हैं ।ये केवल राष्ट्रीय दलों की बाँहें मरोडने के लिये राज्य सभा में स्थान चाहते हैं । ये क्षेत्रीय दल विधान सभा में अपनी संख्या बढा कर अपने प्रभाव में वृद्धि कर सकते हैं ।
भाजपा इस बात को शायद समझ नहीं पायी है कि केन्द्र से लेकर राज्य तक के गठबंधन उसके लिये बहुत मँहगे सिद्ध हुए हैं । सत्ता के क्षणिक सुख के लिये भाजपा ने अपने भविष्य को दाव पर लगा दिया है । सत्ता मोह से दूर रहकर उसे अपने आधार और संगठन में सुधार क प्रयत्न करना चाहिये । केवल सत्ता सुख के लिये झामुमो के साथ गठबंधन उसे भविष्य के लिये बहुत मँहगा पडेगा ।
झारखण्ड के नेताओं को यह समझना होगा कि केवल जीन्स- टी शर्ट पहनने से कोइ आधुनिक नहीं हो जाता, इसके लिये मानसिकता में बदलाव लाना होता है । क्या झारखण्डी नेता इस बात को समझ पाएंगे?
झारखण्ड के साथ नेताओं के धोखे का सिलसिला और आगे बढा जब निर्दलीय मधु कोडा की सरकार कांग्रेस और जेएमएम के समर्थन से बनी और उस सरकार ने लगभग दो सालों तक शासन कर न केवल एक कीर्तिमान बनाया बल्कि झारखण्ड को जिस निर्दयता से लूटा उसकी मिसाल किसी अन्य राज्य मे नहीं है ।
झारखण्ड से राज्य सभा के चुनाव में धन बल की जो भूमिका होती है वह वास्तव में झारखण्ड के नेताओं के बिकाउपन को ही स्पष्ट करता है ।बाहरी अवाँछित तत्त्वों के लिये झारखण्ड चारागाह है । यहाँ के कुछ राजनीतिक दल और अधिकतर विधान सभा सदस्य राज्य सभा चुनाव का इंतजार उसी प्रकार करते हैं जैसे किसान अगहन और बैसाख का तथा शिक्षक उत्तर-पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का । अभी तक का इतिहास बताता है कि इसमें झामुमो की भूमिका सबसे अधिक चिंताजनक रही है । अगर काँग्रेस / भाजपा जैसे अखिल भारतीय राष्ट्रीय दल राज्य सभा में अपना प्रतिनिधित्व बढाना चाहते हैं तो बात समझ में आती है, परन्तु जब झामुमो या झाविमो राज्य सभा में जाने के लिये एडी-चोटी का पसीना बहाते हैं तब उनके उद्देश्य सन्देह के घेरे में आ जाते हैं ।ये केवल राष्ट्रीय दलों की बाँहें मरोडने के लिये राज्य सभा में स्थान चाहते हैं । ये क्षेत्रीय दल विधान सभा में अपनी संख्या बढा कर अपने प्रभाव में वृद्धि कर सकते हैं ।
भाजपा इस बात को शायद समझ नहीं पायी है कि केन्द्र से लेकर राज्य तक के गठबंधन उसके लिये बहुत मँहगे सिद्ध हुए हैं । सत्ता के क्षणिक सुख के लिये भाजपा ने अपने भविष्य को दाव पर लगा दिया है । सत्ता मोह से दूर रहकर उसे अपने आधार और संगठन में सुधार क प्रयत्न करना चाहिये । केवल सत्ता सुख के लिये झामुमो के साथ गठबंधन उसे भविष्य के लिये बहुत मँहगा पडेगा ।
झारखण्ड के नेताओं को यह समझना होगा कि केवल जीन्स- टी शर्ट पहनने से कोइ आधुनिक नहीं हो जाता, इसके लिये मानसिकता में बदलाव लाना होता है । क्या झारखण्डी नेता इस बात को समझ पाएंगे?