Wednesday, November 3, 2021
दिवाली और पर्यावरण
Wednesday, October 27, 2021
Sunday, October 24, 2021
The Himalayan Kingdoms in Indian Foreign Policy, Raj Kumar Jha
Tuesday, September 28, 2021
वीर सावरकर और खिलाफत आंदोलन के नेता और गाँधी जी के सहयोगी मौलाना शौकत अली के बीच विमर्श
वीर सावरकर (२८ मई १८८३–२६ फरबरी
१९६६) और मौलाना शौकत अली (१० मार्च १८७३–१८ नवंबर १९३८) के बीच संवाद
लगभग १४
वर्ष बीत गए थे जब विनायक दामोदर सावरकर को मार्च १९१० में लन्दन के बो स्ट्रीट
जेल में बंद किया गया था | विभिन्न महादेशों में कई मुकदमों का सामना करते हुए
अंडमान के काल कोठरी में दस वर्षों से अधिक यातनाएं सहते हुए जेल जीवन सावरकर के
अस्तित्व का हिस्सा बन गया था | १९२० में शाही आम माफ़ी के समय लगभग ७५००० नागरिकों
ने राजनीतिक कैदियों को छोड़ने की अपील की थी और कई लोगों को मुक्त भी किया गया था |
परन्तु सावरकर बन्धुओं को काल कोठरी में ही रखा गया | १९२१ में सावरकर को
रत्नागिरी के जिला जेल में भेजा गया और उनके बड़े भाई बाबाराव को बीजापुर जेल भेजा
गया| बाबाराव ख़राब स्वास्थ के चलते सितंबर १९२२ में रिहा किया गया और सावरकर को १९२३
में पूना के येरवडा जेल भेज दिया गया |
जनवरी १९२४ में सावरकर को जेल से
सशर्त रिहाई मिली | पहली शर्त थी कि सावरकर बम्बई प्रांत के रत्नागिरी जिला के
बाहर बिना गवर्नर या जिलाधीश की अनुमति के नहीं जाएँगे | दूसरी शर्त थी कि पाँच
वर्षों तक वे सार्वजनिक रूप से या निजी रूप से राजनीति में भाग नहीं लेंगे| पाँच वर्ष के बाद ये प्रतिबन्ध बढाए जा सकते थे
|
१९२४ में रत्नागिरी प्लेग की चपेट
में था | सावरकर ने २७ मई १९२४ को रत्नागिरी से बाहर जाने की अनुमति मांगी जो
उन्हें १४ जून को मिली | १ जुलाई को सावरकर नासिक के लिए निकले| रास्ते में वे कोल्हापुर, मिराज, सतारा, पूना और कल्याण में उनका
भव्य स्वागत किया गया| रत्नागिरी लौटने के क्रम में नवम्बर १९२४ में वे बंबई
पहुंचे जहाँ उन्होंने कहा : “ मुसलमान कांग्रेस में रहते हुए खिलाफत आंदोलन और
उलेमा सम्मेलनों में भाग लेते हैं, और हिन्दू उनपर आरोप नहीं लगाते हैं| इसी तरह हिन्दू कांग्रेसियों को भी हिन्दू एकता
आंदोलनों में भाग लेने का अधिकार है|”
फरबरी १९२५ में बंबई में गाँधी जी के
नजदीकी साथी और खिलाफत आंदोलन से प्रसिद्धि प्राप्त किये मौलाना शौकत अली उनसे
मिलने पहुंचे | दोनों के बीच बातचीत जितनी कटु थी उतनी ही रोचक भी थी| प्रस्तुत
हैं बातचीत के कुछ अंश | (अनुवाद मेरा) | इस मुलाकात को २५ फरबरी १९२५ के ‘
लोकमान्य ‘ और ‘मराठा’ के अंकों में विस्तृत रपट छपी | सावरकर और शौकत अली के बीच
जो जीवंत विमर्श हुआ वह उस समय के राष्ट्र और धार्मिक नेतृत्व के मनोभाव को स्पष्ट
करता है |
शौकत अली : मैंने पहले आपको जो संदेश
भेजा था वह तो मिला ही होगा !
सावरकर : हाँ, मिल गया था | और
हिन्दू-मुस्लिम एकता की खातिर मैंने उन मुद्दों को दरकिनार कर दिया है जिन्हें आप
विवादास्पद मानते हैं – हिंदू संगठन का मुद्दा|
शौ . अ . – आह! यह बहुत अच्छी खबर है
| हमने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए इतनी मेहनत की है| यह संगठन मुहिम उस माहौल को
ख़राब कर रहा है | मुस्लिम समुदाय स्वाभाविक रूप से हम जैसे लीडरान से पूछते हैं कि
यदि हिंदू संगठित होंगे तो हम भी होंगे| इसलिए स्वराज के वास्ते और इस लाचार मुल्क
की बेहतरी के लिए यह अच्छा होगा कि हिंदू अपने आपको केवल भारतीय मानें और धार्मिक
भेद को भूल जाएं | मुझे यह बात हमेशा दर्द देती रहती है कि आपके जैसा देशभक्त
जिसने मुल्क की आज़ादी के लिए इतनी कुर्बानियां दी, अनावश्यक रूप से इन सांप्रदायिक
मुद्दों में उलझता जा रहा है | अब जब आप कह रहे हैं कि आपने इन्हें छोड़ दी है,
तो मेरे लिए यह राहत की बात है |
सा. – आप जो कह रहे हैं वह पूर्णतः सही
है, यद्यपि मैंने संगठन आंदोलन को बंद करने की घोषणा आपसे एक वादा की आशा में
प्रचारित नहीं की है |
शौ. अ. – क्या वादा ?
सा. – मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि
आप कब खिलाफत और अल-उलेमा आंदोलनों को बंद करने की घोषणा कर रहे हैं? एक बार मैं
यह जान जाऊं तो मैं भी अपने आंदोलन को तुरंत बंद कर दूंगा |
शौ.अ. – ( गुस्साते हुए ) यह कैसे
मुमकिन है? व्यावहारिक बनिए और ठंढे दिमाग से सोचिए| एक विदेशी ताकत ने हम पर कब्जा
कर लिया है और हमारे दोनों कौमों को नष्ट करने पर तुला है | इस परिदृश्य में,
एकजुट होने के बदले, आप यह संगठन आंदोलन चला रहे हैं, हम विदेशी चुनौती से कैसे
निबट सकते हैं ? और याद रखिये कि पूरे इतिहास में मुसलमानी बलों से हिंदू हारते
रहे हैं| इसलिए हमें झूठी समानता नहीं बनानी चाहिए| अगर हिंदू आज़ादी चाहते हैं
तो मुसलमानों के साथ होने के अलावा उनके
पास दूसरा रास्ता नहीं है |
सा. – यह बातचीत दिशाहीन है | मुझे
राजनीति करने की आज़ादी नहीं है, इसलिए मैं राजनीतिक बातों में नहीं पडूँगा | इतना बता
देना काफी है कि जब आप या आप जैसे लोग सार्वजनिक जीवन में आए, मैं और मेरे साथी क्रांतियों
और राजनीतिक जीवन में आकण्ठ डूबे थे | इसलिए राजनीति का पाठ पढ़ाना अनावश्यक है |
दूसरे, जहाँ तक इतिहास की बात है आपको जानना चाहिए कि अरबिया का इतिहास हज़ार साल पुराना
होगा, हिंदुस्तान का नहीं | और हर बार जब हमें हार का सामना करना पड़ा, हमने सूद
सहित इसे चुका दिया | ऐटक से रामेश्वरम तक मराठों ने मुगलों से छीनकर भारत पर
प्रभुत्व बनाए रखा था | इसलिए इन वाग्युद्धों में हमें नहीं पड़ना चाहिए | केवल
मेरे सीमित प्रश्न का उत्तर दे दीजिए कि आप खिलाफत और उलेमा आंदोलनों को कब बंद
करने जा रहे हैं ?
शौ.अ. – देखिए, हमने खिलाफत गुपचुप
नहीं चलाया है | हिन्दुओं को इससे डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि इस आंदोलन का
नेतृत्व एक हिंदू ही कर रहा है|
सा. – संभवतः | यदि हिंदू नेतृत्व के
चलते खिलाफत खतरनाक नहीं माना जाएगा तो हिंदू संगठन जिसका नेतृत्व भी हिंदू ही कर
रहा है कैसे खतरनाक हो जाएगा ? .... मैं आपसे पूछता हूँ कि जब सांप्रदायिक एकता और
देश के लिए हिंदू अपनी आशंका को दरकिनार कर हजारों की संख्या में खिलाफत के समर्थन
में आए, तो हमें मुट्ठी भर भी मुसलमान क्यों नहीं मिलते जो हिंदू संगठन का समर्थन
करते हों ! ....उनके साथ खड़ा होने के लिए हिन्दुओं के कृतज्ञता ज्ञापित करने के
लिए मुसलमानों को भी हिंदू एकता का समर्थन करना चाहिए | यदि खिलाफत में कोई
गोपनीयता नहीं है तो संगठन में कहाँ गोपनीयता है ! आगा खां मिशन या हसन निजामी
मिशन की गुप्त गतिविधियों को देखने के बदले आप हिन्दुओं को क्यों नसीहत दे रहे हैं? जो मालाबार, गुलबर्गा, कोहट...
शौ.अ.- (व्यवधान डालते हुए) कोहट में
क्या हुआ ? हिंदुओं ने तो शिकायत नहीं की है, गाँधी से पूछ लीजिए |
सा. – इसमें गाँधी को मत लाइए |
उन्होंने कई वक्तव्य दिए हैं जो सत्य से परे हैं (economical with the
truth) | मालाबार दंगों में उन्होंने कहा था
कि केवल एक हिंदू का जबरन धर्म परिवर्तन किया गया था | जो सत्य हमें दिख रहा है वह
अलग तथ्य वयां करता है | इसलिए मैं उनके वक्तव्यों को बिल्कुल नहीं मानूँगा | मुझे
लगता है कि हम घूम-फिरकर वहीँ आ जाते हैं | मेहरबानी कर मेरे इस प्रश्न का उत्तर दीजिये
कि क्या देश और उसकी एकता के लिए खिलाफत और जबरन धर्म-परिवर्तन जैसे आंदोलनों को
आप पूरी तरह छोड़ देंगे ? अगले ही क्षण संगठन को समाप्त करने का मैं वचन देता हूँ
और मैं अपने सभी सहयोगियों को ऐसा करने के लिए मना लूंगा |
शौ.अ. – लेकिन अपने मज़हब का हिन्दुओं
के बीच प्रचार करना हमारे धर्म का अनिवार्य अंग है | आज सुबह ही मेरी मुलाकात एक
युकाक से हुई जो कह रहा था कि पिछली रात उसे सपना आया जिसमें सर्वशक्तिमान ईश्वर स्वयं
आए थे और उन्होंने मुझसे कहा कि अपने को बचाने के लिए मुसलमान बन जाओ | मैंने तुरत
उसे नजदीकी मस्जिद में भेज दिया जहाँ वह धर्म-परिवर्तन कर सके | यह तो जबरन नहीं
है; प्रबुद्ध होने पर लोग खुद असली विश्वास अपना रहे हैं |
सा.- ठीक है, एक क्षण के लिए मैं
आपकी बात मान लेता हूँ| इसी प्रकार कल यदि एक मुस्लिम युवक मेरे पास आता है, मुझे
अपना सपना सुनाता है जहाँ उसे हिंदू बनने के लिए कहा जाता है तो शुद्धि के द्वारा
उसे मैं हिंदू क्यों नहीं बना सकता? ....
शौ.अ. – ठीक है, आप शुद्धि चलाते
रहिए और हम अपना तबलीग ( धर्मांतरण ) चलाते रहेंगे | देखें कौन जीतता है | हम एक
इकाई हैं; हममें आपके समुदाय जैसा जाति, छुआछूत और क्षेत्रीय भेदभाव का अभिशाप
नहीं है |
सा. – कोई प्रांतीय भेद नहीं!
दुर्रानी और मुग़ल मुसलमानों, दक्खिनी और उत्तरी मुसलमानों और शेख तथा सैयद
मुसलमानों के बीच अंतर का लाभ उठाकर ही मराठों ने मुग़ल साम्राज्य को उखाड़ फेंका था
| शिया-सुन्नी दंगे होते रहते हैं और शैव-वैष्णव दंगे, जो कभी होते नहीं, की तुलना
में सौ गुणा अधिक हिसक होते हैं| हाल
में ही सुन्नियों ने काबुल में एक अहमदिया को पत्थर मार-मार कर मार डाला| बहाबियों
के लिए अन्य सभी मुस्लिम संप्रदाय मारे जाने और जहन्नुम की आग में झोंके जाने लायक
हैं | और छुआछूत की बात, तो मैं कई भंगी मुसलमानों को जानता हूँ जिन्हें दुसरे
मुसलमानों के पानी को भी नहीं छूने दिया जाता और न मस्जिदों में अन्य मुसलमानों के
साथ नमाज़ अता करने दिया जाता है | त्रावनकोर में हाल ही में स्पृश्य और अस्पृश्य ईसाईयों
के बीच दंगा हुआ था | मौलाना साहब, सभी घर और उनके चूल्हे समान ईंट से बनाए जाते
हैं | मुझे मुस्लिम धर्मशास्त्र, इतिहास और साहित्य का थोड़ा-बहुत ज्ञान है | इसलिए
मैं ये बातें आपको विश्वास के साथ कह सकता हूँ | यदि आप कहते हैं कि आप ७ करोड़ मुसलमानों
की संयुक्त ताकत हैं तो हिंदू मराठों ने आपको कैसे उखाड़ फेंका? भारत को अंग्रेजों
ने कैसे ले लिया ?
शौ.अ. – आप महाराष्ट्रियों की यही
हेकड़ी देश की विस्तृत छवि के विषय में मेरी तार्किक व्याख्या में खलल डालती है | आप
मराठा लोग इस देश को अपना देश नहीं मानते हैं या एक (अलग) देश मानते हैं नहीं तो
एकता के वास्ते इन विभाजनकारी और सांप्रदायिक आंदोलनों को वैसे ही बंद कर देते
जैसा अन्य प्रान्तों ने ख़ुशी-ख़ुशी कर दिया |
सा. – आप महाराष्ट्रियों पर अनावश्यक
रूप से आरोप लगा रहे हैं| शिवाजी की लड़ाई केवल मराठों के लिए नहीं थी, बल्कि पूरे
भारतवर्ष के लिए थी | दो दशकों से अधिक समय से हमने संघर्ष का जो झंडा फहराया है
वह देश के लिए भी है | क्या रानाडे, गोखले, या
तिलक ने केवल महाराष्ट्र के लिए संघर्ष किया है? गत पचास वर्षों में देश में हुए
सभी प्रमुख राजनीतिक और क्रांतिकारी आंदोलन इसी धरती से उपजे हैं | बंगाल का
विभाजन हुआ| क्या महाराष्ट्र ने इसका कड़ा विरोध नहीं
किया जैसेकि उसका ही अंग-भंग किया गया हो ! जब जलियांवाला बाग़ की दुखद घटना हुई तो
हम भी पंजाब के साथ विरोध करते रहे और शोकाकुल रहे | यह हम लोगों के द्वारा किया
गया कोई उपकार नहीं है; अपने बन्धुओं और देशवासियों के साथ
उनके दुर्दिन में खड़ा होना हमारा पुनीत कर्त्तव्य है| इसलिए यह आपकी नितांत कृतघ्नता
है कि आप इसे स्वीकार नहीं करते हैं और महाराष्ट्र पर ऐसा नृशंस लांछन लगाते हैं |
दूसरे, आपने कहा कि आप लोग संयुक्त मुस्लिम समुदाय के नेता हैं और आपके हुक्म के
बिना आपका समुदाय कुछ नहीं करता | तो क्या मालाबार, कोहट, दिल्ली, गुलबर्ग के दंगे – जिनमें हमारे मन्दिरों को अपवित्र
और हमारी महिलाओं के साथ दयनीय बलात्कार किये गये – भी आपके ही निर्देशों के
अनुसार हुए थे ? अगर नहीं, तो आप
कैसे यह दावा कर सकते हैं कि आप उस समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं या वे आपकी
बात सुनते हैं ?
शौ.अ. – तब हमलोग जेल में थे और
हमारी अनुपस्थिति में मुस्लिम समुदाय का मोहभंग हो गया, वे दिशाहीन और अधीर हो गए |
सा. – परंतु जब कोहट, दिल्ली और
गुलबर्गा में दंगे हुए तब तो आप जेल से बाहर थे | जब हम हिन्दुओं पर ऐसे जघन्य और
बर्बर अपराध किए जाते हैं तो हम कैसे यकीन कर लें कि आपके बोल और परामर्श दंगाइयों
को मृदु बना देंगे और वे हिंसा छोड़ देंगे ? कल यदि और जब हम या आप मर जाएँगे तो
दोनों समुदायों के बीच अंतर्क्रियाओं का क्या होगा ? हमारा संगठन न आपके विरुद्ध
है, न किसी और के विरुद्ध है | यह केवल आत्मरक्षा और अभी या भविष्य में हम पर
होनेवाले नृशंसता के विरुद्ध प्रतिरक्षा है | जब तक हिंदू संगठन आंदोलन हिंसक,
आक्रामक, आपके अधिकारों, संपत्ति या जिन्दगी को हड़पने वाला नहीं होता है और जब तक
यह सत्य और आत्मरक्षा के लिए खड़ा है, तब तक किसी को इसके विरुद्ध आपत्ति क्यों
होनी चाहिए ? जब तक ये सांप्रदायिक आंदोलन और आगा खां, हसन निजामी या खिलाफत मिशन
चलते रहते हैं, जब तक हजारों हिंदुओं को जबरन और दमनात्मक तरीके से धर्मांतरित किया
जाता है, जब तक उर्दू समाचार पत्र खुले आम अगले ५-१० वर्षों में हिंदुओं के
सामूहिक धर्मांतरण की घोषणा और एजेंडा तय करते रहते हैं, तब तक हिंदुओं को
राष्ट्रीय एकता की मृगतृष्णा के लिए अपने को संगठित करने और अपनी रक्षा के प्रयास
को छोड़ देने की सलाह पाखण्ड है |
शौ.अ. – परंतु आप अपने क्रियाकलापों
से मुसलमानों के दिमाग का ध्रुवीकरण कर रहे हैं | मुसलमान इतने लंबे समय से
हिंदुओं को धर्मांतरित करते रहे हैं | यह कोई नई बात नहीं है जो आज शुरू हुई है |
आपकी शुद्धि एक नई घटना है जो शांत समाज में संघर्ष का बीज बो रही है | यह साफ़ तौर
पर मुस्लिम-विरोधी नहीं है क्या?
सा. – परंतु यह किसका कसूर है मौलाना
साहब? यदि हिंदुत्व (Hinduism) जैसे
सहिष्णु और शांतिप्रिय धर्म को – जिसने कभी किसी का जबरन धर्मांतरण नहीं किया,
बल्कि अपने धर्म के विरुद्ध दमनकारी और हिंसक प्रयासों को भूल गया या क्षमा कर
दिया – आज शुद्धि का सहारा लेना पड़ रहा है, तो दोष किसका माना जाए? पीड़ित का या
आक्रांता का? आज तक हमने लोगों पर भरोसा किया और अपने घर के दरवाजे को खुला रखा |
दुनिया भर के चोर यहाँ आए और हमारी चीजों को लूटने लगे| आज हममें कुछ बुद्धि आई है, हम सावधान हुए हैं और अपने दरवाजे पर ताला
लगाने लगे हैं | और यदि वही डकैत आएँ और कहने लगें, “ हम तो इतने लंबे समय से
लूटते आए हैं, अपने दरवाजे पर ताला लगाकर आप हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं और इससे
हमारे बीच संबंध बिगड़ जाएगा ”, तो हम क्या जवाब देंगे ? मेरी नज़र में ऐसी जानलेवा
एकता को तोड़ देना ही सबसे अच्छा है | दूसरे, ईसाईयों, पारसियों और यहूदियों के भी अपने
संगठन और संघ हैं | वह मुस्लिम मानस को चिकोटी क्यों नहीं काटता है ? क्या यह मान
लेना तर्कसंगत नहीं है कि हिंदू संगठन मुसलमान नेताओं के के कुछ स्वार्थपूर्ण
राजनीतिक और धार्मिक हितों को नुकसान पहुंचाते हैं ? इसलिए मैंने आपसे कई बार पूछा
है कि आप अपने आंदोलनों को कब बंद करेंगे और अब तक आप इसका स्पष्ट उत्तर देने से
बचते रहे हैं|
शौ.अ. – ( गुस्साते हुए ) – हम इसे
नहीं छोड़ेंगे | इसमें कुछ भी हिंदू-विरोधी नहीं है |
सा. – ठीक है, तब हम भी अपना आंदोलन
नहीं छोड़ेंगे | हमारा आंदोलन न केवल मुस्लिम-विरोधी नहीं है, बल्कि किसी समुदाय, ईसाई,
यहूदी, पारसी या किसी अन्य, के विरुद्ध इसमें क्रोध / चिंता ( angst ) नहीं है | हमरा आंदोलन मानता है कि एक
संप्रदाय के रूप में संगठित होने का आपको पूरा अधिकार है | केवल आक्रामक दरिंदा ( predators ) होना छोड़ दीजिए| हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं है
और हम चाहते हैं कि इस देश में, जो हम सबका है, आपके साथ हमरा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व हो | जैसे इस्लाम या ईसाइयत उस
धर्म में धर्मांतरण कराते हैं जिसे वे एकमात्र शब्द मानते हैं, तो हम हिंदुओं को
भी उस विश्वास को प्रचारित करने का अधिकार है जिसमें हम हजारों वर्षों से और कई
पीढ़ियों से निष्ठा रखते आए हैं, और वह भी किसी के गले पर चाकू रखे बिना | केवल
किसी प्रकार के आक्रमण से बचने के लिए हम अपने को संगठित कर रहे हैं | आत्मरक्षा किसी
भी समाज का नैसर्गिक अधिकार है| धर्मों की चिंता किये बिना, और ब्रह्मांडीय मानवता
में विश्वास रखते हुए, हमारा आंदोलन एक ईश्वर, एक चर्च, एक भाषा, एक प्रार्थना और
हमारे मातृभूमि की पवित्रता के आधार पर सबका हाथ पकड़ने में विश्वास करता है |
बहस अनिर्णय में समाप्त हो जाती है |
स्रोत : विक्रम सम्पत, Savarkar:
A Contested Legacy: 1924-1966
Sunday, September 5, 2021
Saturday, August 21, 2021
राजगोपालाचारी के गवर्नर जनरल बनने की कहानी
श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के गवर्नर जनरल बनने की
कहानी और परदे के पीछे का खेल
जून १९४८
में लुइस फिलिप माउंटबैटन का कार्यकाल समाप्त होने वाला था | उनके उत्तराधिकारी की
तलाश शुरू हो गई थी | एडविना ने नेहरु जी को सरदार पटेल का नाम सुझाया| नेहरु जी
को यह अच्छा लगा कि उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी अलंकारिक पद पर चले जाएँगे | जब
माउंटबैटन ने सरदार से गवर्नर जनरल बनने की बात कही तो पटेल ठहाका लगाकर हँसने लगे
| नेहरु की दूसरी पसंद बंगाल के गवर्नर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी थे | नेहरु जी ने
३० मार्च १९४८ को राजा जी को पत्र लिख कर इसके लिए आग्रह किया | परन्तु बुद्धिमान
राजा जी को इसमें रुचि नहीं थी| उन्होंने कुछ दिनों का समय माँगा | एक सप्ताह के
बाद नेहरु जी ने राजा जी को फिर लिखा : “आशा है आप हमें निराश नहीं करेंगे | हम
आपको यहाँ कई प्रकार की मदद के लिए चाहते हैं | हम में से कुछ पर इतना बोझ है कि
उसे ढोना हमारे लिए मुश्किल है |” पूरी अनिच्छा से राजा जी ने नेहरु जी की पेशकश
को स्वीकार किया | ३ मई १९४८ को माउंटबैटन के उत्तराधिकारी के रूप में चक्रवर्ती
राजगोपालाचारी के नाम की घोषणा की गई |
घोषणा के तीन दिन बाद नेहरु जी ने राजा जी को एक
उदासी भरा पत्र लिखा : “ हमारी राजनीति अपना सच्चा चरित्र या नैतिक आधार खो चुकी
है और हम निरा अवसरवादी की तरह काम कर रहे हैं | हमें जरा भी संदेह नहीं है कि हम
तेजी से बदतर होते जा रहे हैं और अपनी दृष्टि तथा क्रियाकलापों में
प्रतिक्रियावादी बनते जा रहे हैं |” अपने पत्र का समापन करते हुए उन्होंने लिखा: “
मुझे लगता है कि यह मेरे लिए और भारत के लिए भी अच्छा होगा कि कुछ दिनों के लिए
मैं परिदृश्य से बाहर हो जाऊँ|”
राजा जी ने तुरंत एक टेलीग्राम भेज कर कहा कि
नेहरु जी के शब्दों ने उनके दिल को छू लिया है| “ मेरे हिसाब से मेरे बदले आपको गवर्नर जनरल बनना चाहिए
और सरदार (पटेल) को प्रधान मंत्री बनने दीजिए |” “ आप इतने बड़े हैं कि आप उस भावना को
समझेंगे जिसमें मैंने यह सुझाव दिया है | “ परन्तु नेहरु न तो अलंकारिक पद लेने
में रुचि रखते थे न सरदार को प्रधान मंत्री बनने देने में |
Wednesday, April 21, 2021
हिंसा की राजनीति और लास्की
हिंसा की राजनीति और लास्की
हेराल्ड जे लास्की ने अ ग्रामर ऑफ़
पॉलिटिक्स लिखी थी| राजनीति वैज्ञानिक के अतिरिक्त वे व्यावहारिक राजनीतिज्ञ भी थे
| वे ब्रिटेन के लेबर पार्टी के न केवल बौद्धिक प्रचारक थे बल्कि १९४५ में लेबर पार्टी
के अध्यक्ष भी बने थे | १९ जून १९४५ ईस्वी को उन्होंने नेवार्क में एक भाषण दिया
था जिसके प्रकाशन के लिए उन्होंने नेवार्क एडवरटाइजर पर मुकदमा दायर किया था |
नेवार्क एडवरटाइजर ने अपने रपट में कहा था कि लास्की ने ‘ समाजवाद के राजनीतिक
लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा का सहारा लेने को कहा था |’ मुक़दमे की
सुनवाई लार्ड चीफ जस्टिस Goddard ने की
और लास्की के सहकर्मी और लेबर सरकार के पूर्व अटॉर्नी जनरल सर पैट्रिक हेस्टिंग्स
प्रतिवादी के पक्ष में जिरह कर रहे थे |
जिरह लंबा चला| हेस्टिंग्स ने लास्की
से अंत में पूछा कि क्या वे यही कह रहे हैं न कि यदि सहमति से ये समाजवादी
परिवर्तन नहीं होते हैं तो समाजवाद में विश्वास रखनेवालों के द्वारा इन्हें हिंसा
के द्वारा लाया जाएगा?’ लास्की ने ‘हाँ’ कहा |
लास्की न केवल मुकदमा हारे बल्कि
उनपर १३००० पौंड का जुरमाना भी लगाया गया| इस
निर्णय के बाद लास्की ब्रिटिश सरकार से झगड़ पड़े और दो साल के अंदर उनकी मृत्य हो
गई|