वैसे तो भारत की टकराववादी राजनीति में सभी चुनाव और मुद्दे गर्म और विवादास्पद बन जाते हैं, परंतु राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली का 2015 विधान सभा चुनाव पुराने सभी रेकर्डों को तोड रहा है और इसका मुख्य कारण आम आदमी पार्टी और उसकी कार्यविधि है। पहले आआपा ने अपनी ओर से जगदीश मुखी को भाजपा का चेहरा बना दिया और दिल्ली चुनाव को केजरीवाल बनाम मुखी चुनाव का नाम दे दिया। जब भाजपा ने किरण वेदी को अपना नेता घोषित किया तब आआपा ने सुश्री बेदी को 'अवसरवादी' घोषित कर दिया।
लेनिन ने कभी कहा था कि उन्हें गर्व है कि वे अवसरवादी हैं क्योंकि वे अवसर का लाभ उठाने में विश्वास करते हैं। अवसर का उपयोग करने में विफल व्यक्ति व्यक्ति के रूप में भी विफल माना जाता है।
भाजपा ने अरविंद केजरीवाल के साथ चस्पे विशेषण 'भगोडा' का व्यापक प्रयोग करना शुरू किया। आआपा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि भगोडा शब्द असंसदीय है और इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। आखिर अरविंद केजरीवाल को भगोडा क्यों कहा जाता है? सर्वप्रथम, अरविंद ने आइआइटी से इंजिनीयरिंग की डिग्री ली, परंतु इंजिनीयरिंग छोडकर उन्होंने शक्ति और सत्ता की अभिलाषा से सिविल सर्विस परीक्षा दी। आइ ए एस और आइपीएस प्राप्त करने में विफल रहने पर उन्होंने आइआरएस से संतोष किया। सरकारी सेवा में रहते हुए उन्होंने एनजीओ बना लिया और उसके लिए काम करना शुरू किया। बाद में उन्होंने आइआरएस से त्यागपत्र देकर अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन में भाग लिया। अन्ना आंदोलन की सफलता से उत्साहित होकर, अन्ना की इच्छा के विपरीत, उन्होंने राजनीतिक दल बना लिया। दिल्ली विधान सभा चुनाव,2013, में भाजपा से कम सीट पाने के वावजूद् कांग्रेस के सहयोग से उन्होंने सरकार बनायी। मुख्य मंत्री रहते हुए उन्होंने गणतंत्र दिवस की निरर्थकता की बात की और राजपथ पर धरना दिया। बाद में जनलोकपाल का बहाना बनाकर 49 दिनों में ही त्यागपत्र दे दिया।
अब उनपर प्रधानमंत्री बनने का जुनून सवार हुआ और बनारस से मोदी के विरुद्ध चुनाव लडने चले गये। प्रश्न यह है कि वे भगोडा हैं कि नहीं? जो भी व्यक्ति अपने कार्य, उत्तरदायित्व से भागता है, वह भगोडा है। आदर्श स्थिति कभी नहीं होती है, स्थिति को अनुकूल बनाना पडता है। बहुमत नहीं होने का बहाना बनाकर दिल्ली को अराजकता में ठेल देना भगोडा का ही कार्य है। Escapist भी भगोडा है।
लेनिन ने कभी कहा था कि उन्हें गर्व है कि वे अवसरवादी हैं क्योंकि वे अवसर का लाभ उठाने में विश्वास करते हैं। अवसर का उपयोग करने में विफल व्यक्ति व्यक्ति के रूप में भी विफल माना जाता है।
भाजपा ने अरविंद केजरीवाल के साथ चस्पे विशेषण 'भगोडा' का व्यापक प्रयोग करना शुरू किया। आआपा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि भगोडा शब्द असंसदीय है और इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। आखिर अरविंद केजरीवाल को भगोडा क्यों कहा जाता है? सर्वप्रथम, अरविंद ने आइआइटी से इंजिनीयरिंग की डिग्री ली, परंतु इंजिनीयरिंग छोडकर उन्होंने शक्ति और सत्ता की अभिलाषा से सिविल सर्विस परीक्षा दी। आइ ए एस और आइपीएस प्राप्त करने में विफल रहने पर उन्होंने आइआरएस से संतोष किया। सरकारी सेवा में रहते हुए उन्होंने एनजीओ बना लिया और उसके लिए काम करना शुरू किया। बाद में उन्होंने आइआरएस से त्यागपत्र देकर अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन में भाग लिया। अन्ना आंदोलन की सफलता से उत्साहित होकर, अन्ना की इच्छा के विपरीत, उन्होंने राजनीतिक दल बना लिया। दिल्ली विधान सभा चुनाव,2013, में भाजपा से कम सीट पाने के वावजूद् कांग्रेस के सहयोग से उन्होंने सरकार बनायी। मुख्य मंत्री रहते हुए उन्होंने गणतंत्र दिवस की निरर्थकता की बात की और राजपथ पर धरना दिया। बाद में जनलोकपाल का बहाना बनाकर 49 दिनों में ही त्यागपत्र दे दिया।
अब उनपर प्रधानमंत्री बनने का जुनून सवार हुआ और बनारस से मोदी के विरुद्ध चुनाव लडने चले गये। प्रश्न यह है कि वे भगोडा हैं कि नहीं? जो भी व्यक्ति अपने कार्य, उत्तरदायित्व से भागता है, वह भगोडा है। आदर्श स्थिति कभी नहीं होती है, स्थिति को अनुकूल बनाना पडता है। बहुमत नहीं होने का बहाना बनाकर दिल्ली को अराजकता में ठेल देना भगोडा का ही कार्य है। Escapist भी भगोडा है।
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