Monday, November 14, 2016

Lucky Nehru

आचार्य कृपलानी ने एक बार कहा था कि पंडित नेहरु वास्तव में भाग्यशाली हैं| मोतीलाल नेहरु के घर में जन्म लेने के चलते जन्म के समय लोगों ने कहा की नेहरु की जय | प्रधानमन्त्री बनने पर जयकार हुआ | अभावग्रस्त भारत के लोगों को खिलाने के लिए जब वे विदेश से कर्ज लाते हैं तो लोग कहते हैं 'नेहरु की जय'| जब बाद में नेहरु का अभागा उत्तराधिकारी फिर धन लाने के लिए विदेश जाएगा तो वे कहेंगे 'पहले का चुकता करो फिर नया लो' | जब वह बिचारा अपना सा मुंह लिए वापस लौटेगा तो लोग कहेंगे 'नेहरु की जय' |
परंतु स्थिति अब बदल चुकी है| नेहरु का आकलन अब अलग तरीके से होने लगा है| परन्तु प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में नेहरु ने भारत निर्माण में जिस शिल्पकार की भूमिका निभाई उसे नकारना असंभव है|

Sunday, November 6, 2016

एजेण्डा के लिए नैतिकता को गिरवी रखने वाले पत्रकार


हुकूमत से लड़ना यदि पत्रकारिता है ?
हुकूमत से सवाल पूछना यदि पत्रकारिता है ?
तो पत्रकारों को
मामूली किराए पर मिले सरकारी आवास,
रियायती प्लॉट, बसों के फ्री सफर
ट्रेन किराए में 50 फीसदी तक की रियायत
संसद भवन की कैंटीन में लगभग मुफ्त भोजन
सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज
सरकारी डाकबंगले और सर्किट हाउस में
फोकट में ठहरने की मुफ्तखोरी
कारपोरेट गिफ्ट..
प्रेस कांफ्रेंस में थाली भर भकोसना
और भी तमाम सरकारी और कार्पोरेटी सुविधाएं
तनिक देर किए बिना छोड़ देनी चाहिए।
रवीश, थाववी, नकवी जैसे तमाम पत्रकार
यदि जिगर रखते हैं ?
हुकूमत से सवाल पूछने का नैतिक अधिकार
चाहते हैं तो जनता के पैसों पर जारी
मुफ्तखोरी के खिलाफ आवाज उठा कर दिखाएं !
देश की जनता
और मेरे से नाकाबिल भी आपकी
आवाज का साथ देंगे !
तब तक अपनी आवाज नीची
और स्क्रीन काली रखें!
विरोध में नहीं...
लज्जा से !
.
हे देश के पत्रकारों!
सरकार की झूठी पत्तल चाटने वाले कुत्ते
ऊँची आवाज में बात करने की जुर्रत नहीं करते ।
और ना भोंकने की आजादी की मांग करते हैं।
ऐसी ऊँची आवाज हम जैसे
सड़कछाप पत्रकारों को सुहाती है।
आप जैसों को नहीं!
क्योंकि अपन बेदाग हैं।
खुल्ला बोल रहा हूँ !
.
सबसे मुश्किल युद्ध अपने
घर और अपनी क़ौम से युद्ध
करना होता है रवीश !
बकाए सारे युद्ध नपुंसकों के युद्ध है !
आओ रवीश !
असल महाभारत शुरू करें !
- Sumant Bhattacharya ( ? )
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