Saturday, November 4, 2017

पितृपक्ष से लेकर देवोत्थान तक

दुर्गा - मिथिला की बेटी
काली - घर की बहू
षष्ठी - यक्षी
इन तीनों की पूजा संपन्न होने के बाद देवोत्थान
श्री अच्युतानंद झा 
चौमासे की धूम
चौमासे का प्रारंभ श्रावण मास से हो जाता है। चौमासे के प्रथम दो महीने समस्त पूर्वी भारत बाढ़ से आक्रान्त रहता है। इनसे मुक्त हो पूर्वजों की शांति का प्रयास कर सुखद भविष्य की कामना की जाती है।
लोक-मान्यता के अनुसार दुर्गा मिथिला की बेटी है जो हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्षमें प्रथम दस दिनों के लिये अपने मायके आती हैं। उनके आते ही संपूर्ण वातावरण में एक अजीब सी पवित्रता और शांति छा जाती है।आठ दिनों तक कुशल-क्षेम, मेल-मिलाप हो जाने के पश्चात् उन्हें नूतन वस्त्राभूषण और महाप्रसाद दे अगले दिन विदा दी जाती है।
और काली हैं दुर्गा की ननद और हमारी बहू जो हर वर्ष कार्तिक मास की अमावश्या के दिन अपने ससुराल आतीं है, ग़ुस्से से लाल, क्रोध से भरी हुईं ! उनके क्रोध को शांत करने के लिये उन्हें उनके द्वारा लिये जाने वाले हर क़दम पर बलि-प्रसाद दी जाती है। ससुराल आने के बाद घूम-घूम कर सारा घर देख संतुष्ट हो जातीं है कि बेटी को सारी संपत्ति नहीं दे दी गयी। निश्चिन्त हो अगली सुबह अपने मायके चल देती हैं।
काली के चले जाने के बाद छठे दिन अपने बच्चों की कुशलता के लिये, सूर्य को साक्षी बना, यक्षी षष्ठी की पूजा-अर्चना की जाती है।
मातृ-शक्तियों को प्रसन्न करने के बाद, निश्चिन्त होकर भगवान विष्णु को उनकी निद्रा से जगाया जाता है, उन्हें बताते हुये ‘ मेघागता निर्मलपरिपूर्णचंद्रा...(सारे बादलों के चले जाने से आकाश सुंदर और मनोहारी चंद्रमा से शोभायमान हो रहा है....)।

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