Wednesday, July 12, 2017

महराज रामेश्वर सिंह



श्री Bhawesh Chandra Mishra जीक देवाल सँ
☆महान साधक महाराजाधिराज 'रमेश्वर सिंह '☆
(साधना -पक्ष)
पुष्प -5 ॐ
सिद्धि-कथा --
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राजनगर मे विशाल मंदिर बनाओल गेल। ओहि मे माॅ काली के मूर्तिक स्थापना होयबाक छल।लोकक करमान लागल रहै।अजमेर सॅ छौ महिना मे बनि क' मूर्ति आयल रहए।सहस्त्रो ब्राह्मणक मंत्रोच्चार सॅ आकाश गुंजायमान भ' गेल ।108 ब्राह्मण तॅ मूर्ति बनबाक काले सॅ पुरश्चरण मे लागल रहथि ।ओहि दिन तॅ सहस्त्रोक संख्या भ' गेल छल।
किन्तु, महाराज प्रातःकाले सॅ साधना-कक्ष मे बन्द रहथि ।मूर्ति, वेदी पर स्थापित भेल।ओहि मे आॅखि लगेबाक समय आबि गेल ।महाराज अपन कक्ष सॅ निकललाह आ पुरश्चरणकर्ता ब्राह्मण केॅ सावधान कएलनि , पुनः साधना-कक्ष मे चलि गेलाह।भगवती के आॅखि लगाओल गेलैन्ह।मुदा ई की ! जे मिस्त्री आॅखि लगौलक ओकर दुनू हाथ ऊपर के ऊपरे रहि गेलै।ओ असहाय अवस्था मे ठाढे रहि गेल, ने घूमि सकै छल आ ने बैसि सकै छल ।ओकरा मुॅह सॅ बोली तक नै बहराइ।
महाराज एलाह ।किछु काल मूर्ति दिस देखि, झटाक सॅ मिस्री के हाथ पकड़ि नीचाॅ क' देलनि।ओहि स्थान सॅ ओकरा खींचि लेलाह।बस, फेर ओ पहिने जकाॅ भ'गेल ।भीड़ जय-जयकारक निनाद सॅ आकाश गुंजित क' देलक ।
एकबेर कमला नदी में बाढि आयल छलै। नदी ओहि भू-भाग के काटैत 'काली मंदिर ' दिस बढऽ लागल ।महाराज के खबरि भेलैन ।ओ आबि क' कमला मे स्नान केलैन, किछु जप क' भीजले धोती पहिरने जेना-जेना घूमैत गेला ,तहिना-तहिना कमला नदी के धार सेहो घूमि गेल।ओहि धारक एहि प्रकारक घुमाव देखि लोक चकित भ' गेल रहए।
●महाप्रयाण -;-
जखन महाराज अंतिम बेर बीमार पड़ला त' हुनकर बीमारी उग्र रूप ध' लेलक। डाक्टरक राय भेलैन जे हुनका निकट क्यो नहि आबथि ।एतऽ धरि जे रानी साहिबा सेहो नहि ।ओहि समय देख-भालक सब भार हुनक प्राइवेट सेक्रेटरी पं• मथुरा प्रसाद दीक्षित के सौंपि देल गेल ।दीक्षित जी बहुत सावधानी सॅ कक्षक पहरा देब' लगलाह ।जाहि दिन महाराजक मृत्यु भेलैन, दीक्षित जी निगरानी मे रहथि ।
--- रात्रिक समय छलैक ।ओहि समय हुनका प्रतीत भेलैन जे महाराजक शैय्याक निकट क्यो धीरे -धीरे रुदन क' रहल अछि ।ओ चौंकि गेला, महराज सोचला जे महारानी साहिबा नै त' आबि गेलीह?
दीक्षित जी जल्दी -जल्दी पहुँचला त' देखै छथि जे ओत' क्यो नहि छल।
किछु कालक बाद फेर ओहने रुदनक स्वर सुनाइ पड़लैन ।एहि बेर ठीक-ठीक सुनबा मे एलैन जे मंदिर मे सॅ रुदनक स्वर आबि रहल अछि ।महाराजक कक्ष हुनकर कुल-देवी भगवती ' कंकालिनी 'मंदिर के निकट छलैन ।दीक्षित जी मंदिर पहुँचला मुदा मंदिर मे क्यो नहि छल।
आब ओ सोचला आ ' ठीके सोचला जे क्यो दोसर नहि , जगदंबा स्वयं अपन पुत्रक लेल कानि रहली अछि ।'
ओही क्षण जगदंबाक महान साधक पुत्र बहुत विकल भ' गेलाह'आ किछु क्षणक बाद महाराजक प्राणान्त भ' गेलैन।
भारतवर्षक एकटा महान साधक, महा-सिद्ध -पुरुषक "महा-प्रयाण भ' गेल ।
ॐपंच पुष्पांजलि ॐ
भवेश चन्द्र मिश्र 'शिवांशु '
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
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Monday, July 10, 2017

महाराजा रामेश्वर सिंह





'via Blog this☆महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह ☆

(साधना -पक्ष)
पुष्प --4
महाराज वास्तव मे फल-श्रुति मे वर्णित साधकक मूर्त रूप छलाह।प्रत्येक तीर्थ-स्थान पर जा कऽ साधना केलैन, मुदा मुख्य रूप सॅ 'कामाख्या' मे साधना संपन्न भेलैन ।कामाख्या पीठक सब सॅ ऊॅच चोटी ' भुवनेश्वरी ' पर हुनकर राजमहल बनल छल,जत'रहि क' ओ साधना करै छलाह।महाराजक बाद क्यो ओहन साधक नहि भेल जे प्रत्यक्ष महा-पीठ के अनावृत क' निशार्चन क' सकए।
रात्रि नौ बजे सॅ प्रातः तीन बजे धरि महाराज कतेको बेर कामाख्या महापीठ पर अर्चन केलैन ।
ओहि समय मे महा-पीठ पर सॅ डेढ़ मनक सुवर्णक ढक्कन हटा देल जाइ छलै। महा-पीठक आवरण रहित स्वरूप रक्त-वर्ण अपराजिता पुष्प के छैन एहेन कहल जाइत अछि।ओत'सब पात्र सुवर्ण के स्थापित होइत छल, आ ओकर त्रिपद सेहो सुवर्णे के रहैत छलै।
मिथिला में एहन महान तंत्र साधक बहुत कम भेल छथि ।ओ एतेक उच्च स्तर पर पहुॅचि माँ काली संग एकाकार भ'गेल रहथि।
सन् 1924 के प्रसंग अछि ।तत्कालीन वायसराय महाराज के भेट हेतु बजौने रहथिन ।महाराज दिल्ली गेलाह,अगिले दिन नौ बजे भेटक समय निर्धारित छल।
महाराज प्रातः उठि पूजा मे एहन तन्मय भेला जे समय के ज्ञान नहि रहलैन। वायसराय लग एक घंटा विलंब सॅ पहुॅचला।वायसराय समय के पाबंदी नहि रखबाक उलाहना देलकैन ।ओ बाजल 'पूजा करने से कोई फायदा नहीं, व्यर्थ में समय की बर्बादी है।'
महाराज सुनैत रहला, जे आवश्यक बात छल कहि क' लौटि गेला ।दोसर दिन महाराज पूजा पर बैसला और ओम्हर वायसराय जत' देखए ततै ओकरा महाराज ध्यानावस्था मे देखाइ देथिन।वायसराय घबरा गेल आ तुरंत महाराजक कोठी पर पहुॅचि ड्राइंग रूम मे बैसि गेल ।बैसिते ओकर आॅखि मुना गेलै , ओकरा आगाॅ पूरा दृश्य आब' लगलै , जाहि मे चींटी सॅ ल' मनुख तक सब मे माॅ कालीक दर्शन होब' लगलै।
महाराज जखन पूजा समाप्त क' ड्राइंग रूम मे एलाह त' ओ बैसल रहए निःस्तब्ध! सब अंग स्थिर ,आॅखि सॅ आनन्दाश्रु के धार बहि रहल छलैक। महाराज मुस्कुराइत ओकर वक्ष-स्थल स्पर्श कएलनि तखन ओकरा होश भेलै।
ओ हाथ जोड़ि लेलक ।महाराज कहलैन - ' पूजा आदि करने का यही फल है,जो आपने देखा है।जिस स्त्री को आपने देखा है वही ईश्वर हैं, जिसमें सारा संसार है।और, जो संसार की सभी वस्तुओं में व्याप्त हैं ।"
ओ हाथ जोड़ि क्षमा माॅगि लेलक ।
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क्रमशः :-- पुष्प -5 मे
भवेश चन्द्र मिश्र
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
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Saturday, July 8, 2017

सिद्ध महाराजा रामेश्वर सिंह





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तपस्वी ☆महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह☆
(साधना -पक्ष)
पुष्प - 2
'दिन -चर्या'------
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मिथिलाधिपति जहिना कुशल, दक्ष एवं यशस्वी राज-कार्य मे छला, तहिना साधना मे निपुण एवं सिद्ध छला। महाराज नित्य दू बजे रात्रि मे उठि शय्या-कृत्योपरान्त शय्ये पर एक आवृति 'सप्तशतीक' पाठ क' लैथि।ओकर बाद साढे तीन बजे तक स्नानादि सॅ निवृत्त भ' वैदिक संध्या एवं सहस्त्र गायत्री जप क' एक मन चाउर के नित्य पिण्डदान करै छला।ओकर बाद पार्थिव पूजा ब्राह्म-मुहुर्त के प्रदोष -काल में क' भगवती मंदिर मे अबै छला ।ओतऽ ओ तांत्रिकी संध्यादि क' न्यासादि कएलाक उपरांत पात्र-स्थापन करथि।ओ सब पात्र सुवर्ण-मण्डित नर-कपाल के रहैत छल।
आब महाराज स्वयं मुण्ड-माला धारण क' भगवतीक पूजन, आवरण-पूजनादि , जप,पञ्चांग-पाठ कऽ सहस्त्रनाम सॅ पुष्पांजलि दैत छला।जेकर विषय मे ककारादि सहस्त्रनाम में लिखल अछि--------
' विल्व-पत्र सहस्त्राणि करवीराणि वै तथा
प्रति नाम्ना पूजयेद्धि तेन काली वर-प्रदा।'
ओकर पश्चात कुमारी, सुवासिनी, वटुक, सामयिक के पूजन-तर्पण कऽ महाप्रसाद ग्रहण केलाक पश्चात करीब दस बजे धरि तैयार भ' जाथि ।
एक घंटा विश्रामक पश्चात 11बजे सॅ 3•30बजे धरि राज-कार्य देखै छला। ओकर बाद पुनः स्नानादि क' वैदिक संध्योपरांत प्रदोष काल मे पार्थिव पूजन क' महा-निशा मे भगवतीक सांगोपांग पूजन करथि।
'दंत-माला जपे कार्या गले धार्या नृ-मुण्डजा,
काली-भक्तः भवेत सो हि धन्य-रूपः स एवं तु ।'
अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व, जाहि सॅ अभिभूत भ' सर ' जोन वूडरफ ' हिनका सॅ दीक्षा लेलैन ।'शिव चन्द्र भट्टाचार्य ' के सेहो दीक्षा देबाक मुख्य श्रेय महाराजे के छनि ।
क्रमशः - पुष्प -3 मे
भवेश चन्द्र मिश्र 'शिवांशु'
नक्षत्र निकेतन, कबड़ाघाट 

महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह


केहन मनोरम दृश्य उपस्थित होइत रहल छल हैत।जतऽ सामने सत्ताइस सुवर्ण-मण्डित कपाल -पात्र रहैत छल।अर्घ्य पर श्वेत चमकैत दक्षिणावर्त शंखक अर्घ्य -पात्र ,दाहिना मे शांभवी-शक्ति एवं उज्ज्वल विशालाकार त्रिशूल आ वायाॅ मे महिमामयी दीक्षाभिषिक्ता पूज्याशक्ति, सामने सुवर्ण कलश एवं नीलम अथवा महाशंख पर बनल ' आद्या-यंत्र '।
पूजन सामग्रीक तॅ अंबार लागल रहैत छल।कहल जाइछ जे जाहि नर-कपाल पर साक्षी दीप जरैत छल ओ ताम्बूल (पान) खाइत छल, हॅसैत छल, आ शुद्ध -तीर्थादि ग्रहण करैत छल।काली तंत्र कहैत अछि---
' जीवितं ब्रह्म-रंध्रे तु दीपं प्रज्वालयेत् सुधीः '
क्रमशः शेष पुष्प -2 मे
भवेश चन्द्र मिश्र ' शिवांशु '
नक्षत्र निकेतन, कबड़ाघाट,
दरभंगा।
मो• 9835003759


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Monday, July 3, 2017

Towards unfreedom - Amartya Sen

Towards unfreedom | The Indian Express: "Historically, India has certainly been a refuge for persecuted minorities from many different lands — providing shelter and new homes to hounded Jews from the first century, harassed Christians from the fourth century, fleeing Parsis from the late seventh century and oppressed Bahais from the 19th century."



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Rudraprayag: The Misty Abode Of Shiva’s Five Rupas | Creative India

Rudraprayag: The Misty Abode Of Shiva’s Five Rupas | Creative India:



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