श्री Bhawesh Chandra Mishra जीक देवाल सँ
☆महान साधक महाराजाधिराज 'रमेश्वर सिंह '☆
☆महान साधक महाराजाधिराज 'रमेश्वर सिंह '☆
(साधना -पक्ष)
पुष्प -5 ॐ
सिद्धि-कथा --
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राजनगर मे विशाल मंदिर बनाओल गेल। ओहि मे माॅ काली के मूर्तिक स्थापना होयबाक छल।लोकक करमान लागल रहै।अजमेर सॅ छौ महिना मे बनि क' मूर्ति आयल रहए।सहस्त्रो ब्राह्मणक मंत्रोच्चार सॅ आकाश गुंजायमान भ' गेल ।108 ब्राह्मण तॅ मूर्ति बनबाक काले सॅ पुरश्चरण मे लागल रहथि ।ओहि दिन तॅ सहस्त्रोक संख्या भ' गेल छल।
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राजनगर मे विशाल मंदिर बनाओल गेल। ओहि मे माॅ काली के मूर्तिक स्थापना होयबाक छल।लोकक करमान लागल रहै।अजमेर सॅ छौ महिना मे बनि क' मूर्ति आयल रहए।सहस्त्रो ब्राह्मणक मंत्रोच्चार सॅ आकाश गुंजायमान भ' गेल ।108 ब्राह्मण तॅ मूर्ति बनबाक काले सॅ पुरश्चरण मे लागल रहथि ।ओहि दिन तॅ सहस्त्रोक संख्या भ' गेल छल।
किन्तु, महाराज प्रातःकाले सॅ साधना-कक्ष मे बन्द रहथि ।मूर्ति, वेदी पर स्थापित भेल।ओहि मे आॅखि लगेबाक समय आबि गेल ।महाराज अपन कक्ष सॅ निकललाह आ पुरश्चरणकर्ता ब्राह्मण केॅ सावधान कएलनि , पुनः साधना-कक्ष मे चलि गेलाह।भगवती के आॅखि लगाओल गेलैन्ह।मुदा ई की ! जे मिस्त्री आॅखि लगौलक ओकर दुनू हाथ ऊपर के ऊपरे रहि गेलै।ओ असहाय अवस्था मे ठाढे रहि गेल, ने घूमि सकै छल आ ने बैसि सकै छल ।ओकरा मुॅह सॅ बोली तक नै बहराइ।
महाराज एलाह ।किछु काल मूर्ति दिस देखि, झटाक सॅ मिस्री के हाथ पकड़ि नीचाॅ क' देलनि।ओहि स्थान सॅ ओकरा खींचि लेलाह।बस, फेर ओ पहिने जकाॅ भ'गेल ।भीड़ जय-जयकारक निनाद सॅ आकाश गुंजित क' देलक ।
एकबेर कमला नदी में बाढि आयल छलै। नदी ओहि भू-भाग के काटैत 'काली मंदिर ' दिस बढऽ लागल ।महाराज के खबरि भेलैन ।ओ आबि क' कमला मे स्नान केलैन, किछु जप क' भीजले धोती पहिरने जेना-जेना घूमैत गेला ,तहिना-तहिना कमला नदी के धार सेहो घूमि गेल।ओहि धारक एहि प्रकारक घुमाव देखि लोक चकित भ' गेल रहए।
●महाप्रयाण -;-
जखन महाराज अंतिम बेर बीमार पड़ला त' हुनकर बीमारी उग्र रूप ध' लेलक। डाक्टरक राय भेलैन जे हुनका निकट क्यो नहि आबथि ।एतऽ धरि जे रानी साहिबा सेहो नहि ।ओहि समय देख-भालक सब भार हुनक प्राइवेट सेक्रेटरी पं• मथुरा प्रसाद दीक्षित के सौंपि देल गेल ।दीक्षित जी बहुत सावधानी सॅ कक्षक पहरा देब' लगलाह ।जाहि दिन महाराजक मृत्यु भेलैन, दीक्षित जी निगरानी मे रहथि ।
जखन महाराज अंतिम बेर बीमार पड़ला त' हुनकर बीमारी उग्र रूप ध' लेलक। डाक्टरक राय भेलैन जे हुनका निकट क्यो नहि आबथि ।एतऽ धरि जे रानी साहिबा सेहो नहि ।ओहि समय देख-भालक सब भार हुनक प्राइवेट सेक्रेटरी पं• मथुरा प्रसाद दीक्षित के सौंपि देल गेल ।दीक्षित जी बहुत सावधानी सॅ कक्षक पहरा देब' लगलाह ।जाहि दिन महाराजक मृत्यु भेलैन, दीक्षित जी निगरानी मे रहथि ।
--- रात्रिक समय छलैक ।ओहि समय हुनका प्रतीत भेलैन जे महाराजक शैय्याक निकट क्यो धीरे -धीरे रुदन क' रहल अछि ।ओ चौंकि गेला, महराज सोचला जे महारानी साहिबा नै त' आबि गेलीह?
दीक्षित जी जल्दी -जल्दी पहुँचला त' देखै छथि जे ओत' क्यो नहि छल।
दीक्षित जी जल्दी -जल्दी पहुँचला त' देखै छथि जे ओत' क्यो नहि छल।
किछु कालक बाद फेर ओहने रुदनक स्वर सुनाइ पड़लैन ।एहि बेर ठीक-ठीक सुनबा मे एलैन जे मंदिर मे सॅ रुदनक स्वर आबि रहल अछि ।महाराजक कक्ष हुनकर कुल-देवी भगवती ' कंकालिनी 'मंदिर के निकट छलैन ।दीक्षित जी मंदिर पहुँचला मुदा मंदिर मे क्यो नहि छल।
आब ओ सोचला आ ' ठीके सोचला जे क्यो दोसर नहि , जगदंबा स्वयं अपन पुत्रक लेल कानि रहली अछि ।'
ओही क्षण जगदंबाक महान साधक पुत्र बहुत विकल भ' गेलाह'आ किछु क्षणक बाद महाराजक प्राणान्त भ' गेलैन।
भारतवर्षक एकटा महान साधक, महा-सिद्ध -पुरुषक "महा-प्रयाण भ' गेल ।
ॐपंच पुष्पांजलि ॐ
भवेश चन्द्र मिश्र 'शिवांशु '
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।