'via Blog this☆महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह ☆
(साधना -पक्ष)
पुष्प --4
महाराज वास्तव मे फल-श्रुति मे वर्णित साधकक मूर्त रूप छलाह।प्रत्येक तीर्थ-स्थान पर जा कऽ साधना केलैन, मुदा मुख्य रूप सॅ 'कामाख्या' मे साधना संपन्न भेलैन ।कामाख्या पीठक सब सॅ ऊॅच चोटी ' भुवनेश्वरी ' पर हुनकर राजमहल बनल छल,जत'रहि क' ओ साधना करै छलाह।महाराजक बाद क्यो ओहन साधक नहि भेल जे प्रत्यक्ष महा-पीठ के अनावृत क' निशार्चन क' सकए।
रात्रि नौ बजे सॅ प्रातः तीन बजे धरि महाराज कतेको बेर कामाख्या महापीठ पर अर्चन केलैन ।
ओहि समय मे महा-पीठ पर सॅ डेढ़ मनक सुवर्णक ढक्कन हटा देल जाइ छलै। महा-पीठक आवरण रहित स्वरूप रक्त-वर्ण अपराजिता पुष्प के छैन एहेन कहल जाइत अछि।ओत'सब पात्र सुवर्ण के स्थापित होइत छल, आ ओकर त्रिपद सेहो सुवर्णे के रहैत छलै।
रात्रि नौ बजे सॅ प्रातः तीन बजे धरि महाराज कतेको बेर कामाख्या महापीठ पर अर्चन केलैन ।
ओहि समय मे महा-पीठ पर सॅ डेढ़ मनक सुवर्णक ढक्कन हटा देल जाइ छलै। महा-पीठक आवरण रहित स्वरूप रक्त-वर्ण अपराजिता पुष्प के छैन एहेन कहल जाइत अछि।ओत'सब पात्र सुवर्ण के स्थापित होइत छल, आ ओकर त्रिपद सेहो सुवर्णे के रहैत छलै।
मिथिला में एहन महान तंत्र साधक बहुत कम भेल छथि ।ओ एतेक उच्च स्तर पर पहुॅचि माँ काली संग एकाकार भ'गेल रहथि।
सन् 1924 के प्रसंग अछि ।तत्कालीन वायसराय महाराज के भेट हेतु बजौने रहथिन ।महाराज दिल्ली गेलाह,अगिले दिन नौ बजे भेटक समय निर्धारित छल।
महाराज प्रातः उठि पूजा मे एहन तन्मय भेला जे समय के ज्ञान नहि रहलैन। वायसराय लग एक घंटा विलंब सॅ पहुॅचला।वायसराय समय के पाबंदी नहि रखबाक उलाहना देलकैन ।ओ बाजल 'पूजा करने से कोई फायदा नहीं, व्यर्थ में समय की बर्बादी है।'
सन् 1924 के प्रसंग अछि ।तत्कालीन वायसराय महाराज के भेट हेतु बजौने रहथिन ।महाराज दिल्ली गेलाह,अगिले दिन नौ बजे भेटक समय निर्धारित छल।
महाराज प्रातः उठि पूजा मे एहन तन्मय भेला जे समय के ज्ञान नहि रहलैन। वायसराय लग एक घंटा विलंब सॅ पहुॅचला।वायसराय समय के पाबंदी नहि रखबाक उलाहना देलकैन ।ओ बाजल 'पूजा करने से कोई फायदा नहीं, व्यर्थ में समय की बर्बादी है।'
महाराज सुनैत रहला, जे आवश्यक बात छल कहि क' लौटि गेला ।दोसर दिन महाराज पूजा पर बैसला और ओम्हर वायसराय जत' देखए ततै ओकरा महाराज ध्यानावस्था मे देखाइ देथिन।वायसराय घबरा गेल आ तुरंत महाराजक कोठी पर पहुॅचि ड्राइंग रूम मे बैसि गेल ।बैसिते ओकर आॅखि मुना गेलै , ओकरा आगाॅ पूरा दृश्य आब' लगलै , जाहि मे चींटी सॅ ल' मनुख तक सब मे माॅ कालीक दर्शन होब' लगलै।
महाराज जखन पूजा समाप्त क' ड्राइंग रूम मे एलाह त' ओ बैसल रहए निःस्तब्ध! सब अंग स्थिर ,आॅखि सॅ आनन्दाश्रु के धार बहि रहल छलैक। महाराज मुस्कुराइत ओकर वक्ष-स्थल स्पर्श कएलनि तखन ओकरा होश भेलै।
ओ हाथ जोड़ि लेलक ।महाराज कहलैन - ' पूजा आदि करने का यही फल है,जो आपने देखा है।जिस स्त्री को आपने देखा है वही ईश्वर हैं, जिसमें सारा संसार है।और, जो संसार की सभी वस्तुओं में व्याप्त हैं ।"
ओ हाथ जोड़ि क्षमा माॅगि लेलक ।
ओ हाथ जोड़ि लेलक ।महाराज कहलैन - ' पूजा आदि करने का यही फल है,जो आपने देखा है।जिस स्त्री को आपने देखा है वही ईश्वर हैं, जिसमें सारा संसार है।और, जो संसार की सभी वस्तुओं में व्याप्त हैं ।"
ओ हाथ जोड़ि क्षमा माॅगि लेलक ।
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क्रमशः :-- पुष्प -5 मे
क्रमशः :-- पुष्प -5 मे
भवेश चन्द्र मिश्र
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
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