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तपस्वी ☆महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह☆
(साधना -पक्ष)
पुष्प - 2
(साधना -पक्ष)
पुष्प - 2
'दिन -चर्या'------
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मिथिलाधिपति जहिना कुशल, दक्ष एवं यशस्वी राज-कार्य मे छला, तहिना साधना मे निपुण एवं सिद्ध छला। महाराज नित्य दू बजे रात्रि मे उठि शय्या-कृत्योपरान्त शय्ये पर एक आवृति 'सप्तशतीक' पाठ क' लैथि।ओकर बाद साढे तीन बजे तक स्नानादि सॅ निवृत्त भ' वैदिक संध्या एवं सहस्त्र गायत्री जप क' एक मन चाउर के नित्य पिण्डदान करै छला।ओकर बाद पार्थिव पूजा ब्राह्म-मुहुर्त के प्रदोष -काल में क' भगवती मंदिर मे अबै छला ।ओतऽ ओ तांत्रिकी संध्यादि क' न्यासादि कएलाक उपरांत पात्र-स्थापन करथि।ओ सब पात्र सुवर्ण-मण्डित नर-कपाल के रहैत छल।
आब महाराज स्वयं मुण्ड-माला धारण क' भगवतीक पूजन, आवरण-पूजनादि , जप,पञ्चांग-पाठ कऽ सहस्त्रनाम सॅ पुष्पांजलि दैत छला।जेकर विषय मे ककारादि सहस्त्रनाम में लिखल अछि--------
' विल्व-पत्र सहस्त्राणि करवीराणि वै तथा
प्रति नाम्ना पूजयेद्धि तेन काली वर-प्रदा।'
प्रति नाम्ना पूजयेद्धि तेन काली वर-प्रदा।'
ओकर पश्चात कुमारी, सुवासिनी, वटुक, सामयिक के पूजन-तर्पण कऽ महाप्रसाद ग्रहण केलाक पश्चात करीब दस बजे धरि तैयार भ' जाथि ।
एक घंटा विश्रामक पश्चात 11बजे सॅ 3•30बजे धरि राज-कार्य देखै छला। ओकर बाद पुनः स्नानादि क' वैदिक संध्योपरांत प्रदोष काल मे पार्थिव पूजन क' महा-निशा मे भगवतीक सांगोपांग पूजन करथि।
'दंत-माला जपे कार्या गले धार्या नृ-मुण्डजा,
काली-भक्तः भवेत सो हि धन्य-रूपः स एवं तु ।'
काली-भक्तः भवेत सो हि धन्य-रूपः स एवं तु ।'
अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व, जाहि सॅ अभिभूत भ' सर ' जोन वूडरफ ' हिनका सॅ दीक्षा लेलैन ।'शिव चन्द्र भट्टाचार्य ' के सेहो दीक्षा देबाक मुख्य श्रेय महाराजे के छनि ।
क्रमशः - पुष्प -3 मे
भवेश चन्द्र मिश्र 'शिवांशु'
नक्षत्र निकेतन, कबड़ाघाट
नक्षत्र निकेतन, कबड़ाघाट
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