In 1911 Panchayati Raj was introduced in a systematic way by the Zamindar Association of Bihar under the leadership of Darbhanga. Its success has been described by late Maharajadhiraja Sir Rameshwar Singh of Darbhanga in following words. It was sought after by many states of India.
Thursday, December 28, 2017
Wednesday, December 27, 2017
Tuesday, December 19, 2017
Tuesday, November 14, 2017
Sunday, November 12, 2017
Saturday, November 11, 2017
Saturday, November 4, 2017
पितृपक्ष से लेकर देवोत्थान तक
दुर्गा - मिथिला की बेटी
काली - घर की बहू
षष्ठी - यक्षी
इन तीनों की पूजा संपन्न होने के बाद देवोत्थान
काली - घर की बहू
षष्ठी - यक्षी
इन तीनों की पूजा संपन्न होने के बाद देवोत्थान
श्री अच्युतानंद झा
चौमासे की धूम
चौमासे का प्रारंभ श्रावण मास से हो जाता है। चौमासे के प्रथम दो महीने समस्त पूर्वी भारत बाढ़ से आक्रान्त रहता है। इनसे मुक्त हो पूर्वजों की शांति का प्रयास कर सुखद भविष्य की कामना की जाती है।
लोक-मान्यता के अनुसार दुर्गा मिथिला की बेटी है जो हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्षमें प्रथम दस दिनों के लिये अपने मायके आती हैं। उनके आते ही संपूर्ण वातावरण में एक अजीब सी पवित्रता और शांति छा जाती है।आठ दिनों तक कुशल-क्षेम, मेल-मिलाप हो जाने के पश्चात् उन्हें नूतन वस्त्राभूषण और महाप्रसाद दे अगले दिन विदा दी जाती है।
और काली हैं दुर्गा की ननद और हमारी बहू जो हर वर्ष कार्तिक मास की अमावश्या के दिन अपने ससुराल आतीं है, ग़ुस्से से लाल, क्रोध से भरी हुईं ! उनके क्रोध को शांत करने के लिये उन्हें उनके द्वारा लिये जाने वाले हर क़दम पर बलि-प्रसाद दी जाती है। ससुराल आने के बाद घूम-घूम कर सारा घर देख संतुष्ट हो जातीं है कि बेटी को सारी संपत्ति नहीं दे दी गयी। निश्चिन्त हो अगली सुबह अपने मायके चल देती हैं।
काली के चले जाने के बाद छठे दिन अपने बच्चों की कुशलता के लिये, सूर्य को साक्षी बना, यक्षी षष्ठी की पूजा-अर्चना की जाती है।
मातृ-शक्तियों को प्रसन्न करने के बाद, निश्चिन्त होकर भगवान विष्णु को उनकी निद्रा से जगाया जाता है, उन्हें बताते हुये ‘ मेघागता निर्मलपरिपूर्णचंद्रा...(सारे बादलों के चले जाने से आकाश सुंदर और मनोहारी चंद्रमा से शोभायमान हो रहा है....)।
लोक-मान्यता के अनुसार दुर्गा मिथिला की बेटी है जो हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्षमें प्रथम दस दिनों के लिये अपने मायके आती हैं। उनके आते ही संपूर्ण वातावरण में एक अजीब सी पवित्रता और शांति छा जाती है।आठ दिनों तक कुशल-क्षेम, मेल-मिलाप हो जाने के पश्चात् उन्हें नूतन वस्त्राभूषण और महाप्रसाद दे अगले दिन विदा दी जाती है।
और काली हैं दुर्गा की ननद और हमारी बहू जो हर वर्ष कार्तिक मास की अमावश्या के दिन अपने ससुराल आतीं है, ग़ुस्से से लाल, क्रोध से भरी हुईं ! उनके क्रोध को शांत करने के लिये उन्हें उनके द्वारा लिये जाने वाले हर क़दम पर बलि-प्रसाद दी जाती है। ससुराल आने के बाद घूम-घूम कर सारा घर देख संतुष्ट हो जातीं है कि बेटी को सारी संपत्ति नहीं दे दी गयी। निश्चिन्त हो अगली सुबह अपने मायके चल देती हैं।
काली के चले जाने के बाद छठे दिन अपने बच्चों की कुशलता के लिये, सूर्य को साक्षी बना, यक्षी षष्ठी की पूजा-अर्चना की जाती है।
मातृ-शक्तियों को प्रसन्न करने के बाद, निश्चिन्त होकर भगवान विष्णु को उनकी निद्रा से जगाया जाता है, उन्हें बताते हुये ‘ मेघागता निर्मलपरिपूर्णचंद्रा...(सारे बादलों के चले जाने से आकाश सुंदर और मनोहारी चंद्रमा से शोभायमान हो रहा है....)।
Wednesday, November 1, 2017
Saturday, October 28, 2017
Friday, October 20, 2017
Unpacking BJP’s Hegemony and the Need for a New Left Narrative in India | The Hindu Centre for Politics and Public Policy
Unpacking BJP’s Hegemony and the Need for a New Left Narrative in India | The Hindu Centre for Politics and Public Policy: "India under the Bharatiya Janata Party is facing a new hegemony of the Right, which is attempting to replace a Left-leaning dominant narrative. What is being contested in this ideological sparring is the manner in which India was conceived and shaped by its founders.
In this article, Anup Kumar, Associate Professor in Communication, Cleveland State University, U.S., draws on Stuart Hall’s famous explication of Thatcherism to understand Modi-ism. Hall’s essay was simultaneously an explication of a political conjuncture as a crisis, and a call for action. Hall called for forging of a new left modernity in the face of authoritarian populism. This article argues that that in this political conjuncture dominated by the Right, as represented by hegemonic articulation of Modi-ism, India needs a new Left politics that can foster a counter-hegemony of its own. It suggests that way forward is an alternative vision of progressive nationalism."
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In this article, Anup Kumar, Associate Professor in Communication, Cleveland State University, U.S., draws on Stuart Hall’s famous explication of Thatcherism to understand Modi-ism. Hall’s essay was simultaneously an explication of a political conjuncture as a crisis, and a call for action. Hall called for forging of a new left modernity in the face of authoritarian populism. This article argues that that in this political conjuncture dominated by the Right, as represented by hegemonic articulation of Modi-ism, India needs a new Left politics that can foster a counter-hegemony of its own. It suggests that way forward is an alternative vision of progressive nationalism."
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Thursday, October 19, 2017
Friday, October 6, 2017
Tweedledee, tweedledum - Christophe Jaffrelot & Gilles Verniers.
Tweedledee, tweedledum | The Indian Express: "Vaghela’s trajectory is revealing of the traditional affinities between the Congress and Hindu nationalism in Gujarat. K.M. Munshi, a lieutenant of Vallabhbhai Patel, who had himself sympathised with the RSS before Gandhi’s assassination, joined the Vishva Hindu Parishad the year it was founded in 1964. Gulzarilal Nanda, who established a personal equation with RSS leaders as early as the 1960s, did the same in 1982. And of course, Gujarat was the stronghold of Morarji Desai’s Congress(O) which joined hands in a Grand Alliance with the Jana Sangh in 1971."
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Tweedledee, tweedledum - Christophe Jaffrelot & Gilles Verniers.
Tweedledee, tweedledum | The Indian Express: "Vaghela’s trajectory is revealing of the traditional affinities between the Congress and Hindu nationalism in Gujarat. K.M. Munshi, a lieutenant of Vallabhbhai Patel, who had himself sympathised with the RSS before Gandhi’s assassination, joined the Vishva Hindu Parishad the year it was founded in 1964. Gulzarilal Nanda, who established a personal equation with RSS leaders as early as the 1960s, did the same in 1982. And of course, Gujarat was the stronghold of Morarji Desai’s Congress(O) which joined hands in a Grand Alliance with the Jana Sangh in 1971."
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Tuesday, September 26, 2017
“My Discussion of Yoga Was Threatening to Its RSS-Linked Administration”: Patricia Sauthoff on Nalanda University - The Caravan
“My Discussion of Yoga Was Threatening to Its RSS-Linked Administration”: Patricia Sauthoff on Nalanda University - The Caravan:
History of Yoga in India as religious, social, and political practice.
History of Yoga in India as religious, social, and political practice.
Sunday, September 24, 2017
Saturday, September 16, 2017
Thursday, September 14, 2017
Thursday, September 7, 2017
China's troublesome civil-military relations | The Japan Times
China's troublesome civil-military relations | The Japan Times: "The mutual-withdrawal deal was struck just after Xi replaced the chief of the PLA’s Joint Staff Department. This topmost position — equivalent to the chairman of the U.S. Joint Chiefs of Staff — was created only last year as part of Xi’s military reforms to turn the PLA into a force “able to fight and win wars.” The Joint Staff Department is in charge of PLA’s operations, intelligence and training."
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Wednesday, August 30, 2017
Saturday, August 26, 2017
मिथिलाक ज्ञान परंपरा
हम अति बूढ़ नदी मरखाहि|
एक त' नाव चढ़ल नहि जाहि||
हो क्षयमास कहै छथि जत|
से सभ थिक कबीराहाक मत ||
गोकुलनाथ कहै छथि जैह।
हमरो सम्मति जानबओएह।।"
क्षयमासक निर्णयक लेल अधिकृत पंडित उमापतिक वचन|
विद्वता आ' अयाची भेनाई एक्के मुद्राक दू पक्ष अछि|
हमरो सम्मति जानबओएह।।"
क्षयमासक निर्णयक लेल अधिकृत पंडित उमापतिक वचन|
विद्वता आ' अयाची भेनाई एक्के मुद्राक दू पक्ष अछि|
Dilip Jha is with Ratneshwar Jha and 28 others.
मिथिला की ज्ञान परम्परा:अयाची प्रसंग
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भारत की सभ्यता ,संस्कृति ,ज्ञान-विज्ञान और उसके उत्थान-पतन की जब भी चर्चा होगी आप चाहकर भी मिथिला की उपेक्षा नहीं कर सकते,परंतु आज की शासन व्यवस्था मिथिला की जितनी उपेक्षा कर सकता था, किया है। जो बात हमे आलेख के अंत में कहना चाहिए था,मैंने प्रारम्भ में ही कह दिया है क्योंकि मेरे आलेख लिखने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है सत्ता नियामक तक,नीति निर्माताओं तक मिथिला की टिस और पीड़ा पहुंचे।
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भारत की सभ्यता ,संस्कृति ,ज्ञान-विज्ञान और उसके उत्थान-पतन की जब भी चर्चा होगी आप चाहकर भी मिथिला की उपेक्षा नहीं कर सकते,परंतु आज की शासन व्यवस्था मिथिला की जितनी उपेक्षा कर सकता था, किया है। जो बात हमे आलेख के अंत में कहना चाहिए था,मैंने प्रारम्भ में ही कह दिया है क्योंकि मेरे आलेख लिखने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है सत्ता नियामक तक,नीति निर्माताओं तक मिथिला की टिस और पीड़ा पहुंचे।
मिथिला की ज्ञान परम्परा की कुछ दृष्टान्त प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ।सर्वप्रथम मैं म.म.भवनाथ मिश्र का चर्च करना चाहता हूँ। भवनाथ मिश्र मिथिला के ऐसे विद्वान हुए जिन्होंने बिना किसी राज्याश्रय के ,बिना किसी सहयोग के शास्त्र चिंतन किया,सृजन किया।मिश्र महोदय अपने वासस्थान में बचे हुए शेष भूमि को उपजा कर अपनी जीविका चलाया करते थे।कभी किसी से याचना नहीं की। विद्वानों के लिए अपरिग्रह का ऐसा दूसरा उदहारण नहीं मिलता है। इसी गुण के कारण वे अयाची के नाम से प्रसिद्ध हैं। सात सौ बर्षों के पश्चात अयाची स्मरण किये जा रहे हैं।अयाची के जन्मडीह मधुबनी जिला के सरिसब ग्राम में उनकी प्रतिमा स्थापित किया जा रहा है। आगामी 9 सितम्बर 2017 को बिहार के माननीय मुख्यमंत्री प्रतिमा का अनावरण करेंगे। उसी दिन एक दाई (चमाइन)की प्रतिमा का भी अनावरण किया जायेगा। इसी दाई ने अयाची मिश्र की पत्नी का प्रसव कराया था ।अभाव के कारण मिश्र जी की पत्नी दाई को कुछ भी पारिश्रमिक नहीं दे पाई थी,दिया था एक आश्वासन । मेरे इस नवजात पुत्र की पहली कमाई तुम्हारी होगी। यशस्वी पुत्र शंकर अल्प वयस में ही अपनी योग्यता से पुरस्कार के रूप बहुत सा रत्न प्राप्त किया और कथनानुसार ही सारे रत्न ,स्वर्ण उस दाई को दे दिया गया। उसकी महानता देखिये उस रत्न से वह कोठा,सोफा बनवाती,जमीन जायदाद खरीदती,लेकिन उन पैसों से उसने सार्वजानिक उपयोग के लिए एक तालाब खुदबाई।आज भी वो तालाब सरिसब ग्राम में 'चमाइन डाबर' के नाम से जाना जाता है। इसलिए महान है मिथिला की ज्ञान परम्परा। योग्यता और प्रतिभा समाज के लिए धरोहर हैं।
अयाची वर्तमान विद्वत समाजके लिए, अन्वेषण,अनुसन्धान करनेवालों के लिए एक उदहारण हैं। अपने चिंतन ,अन्वेषण के लिए भी हमलोग सरकार की ओर ही टकटकी लगाए रहते हैं,उचित नहीं है। कुछ चिंतन अन्वेषण यदि हमलोग कर सकते हैं तो करना चाहिए। हमारा विद्वत समाज अपनी व्यक्तिगत मान्यता और सम्मान ,पुरस्कार को लेकर जितना चिंतित रहता है,यदि वह ऊर्जा हम अपने शास्वत चिंतन की ओर लगाएं तो निश्चितरूप से दशा, दिशा बदलेगी।
सम्प्रति भारत -चीन के मध्य जो तनाव चल रहा है इसी प्रसंग माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं,"भारत तर्क की भूमि है ,न्याय की भूमि है,वाद-विवाद की भूमि।किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से संभव है।" पूर्व में जटिल से जटिल समस्या का समाधान मिथिला के नैयायिकों ने किया है।मिथिला के लोक व्यबहार, लोकोक्ति,फकड़ा,किस्से-कहानी का जब आप विशद अध्ययन,अनुशीलन करेंगे तो न्याय शास्त्र की बहुत सी बात आपको स्वतः समझ में आ जायेगी। एक प्रसंग है एकबार मिथिला में क्षयमास पर विद्वानों क बीच वाद -विवाद हो रहा था।मतैक्य नहीं हो पा रहा था। पं.गोकुलनाथ उपाध्याय का मत अन्य सभी विद्वानों के मत से अलग था।वे क्षय मास का विरोध कर रहे थे।तब समाधान के लिए पं.उमापति उपाध्याय को मध्यस्थ बनाया गया।राजा के द्वारा भी उन्हें विवाद समाधान के लिए अधीकृत किया गया। अपनी बृद्धवस्था और नदी में बाढ़ आने के कारण वे शास्त्रार्थ में भाग नहीं ले सके।उन्होंने निम्न पंक्तियां सभा को प्रेषित की-
"हम अति बुढ़ नदी मरखाहि।
एकटा नाव चढ़ल नहि जाहि।।
हो क्षयमास कहै छथि जत।
से सभ थिक काबिराहक मत।।
गोकुलनाथ कहै छथि जैह।
हमरो सम्मति जानबओएह।।
अयाची वर्तमान विद्वत समाजके लिए, अन्वेषण,अनुसन्धान करनेवालों के लिए एक उदहारण हैं। अपने चिंतन ,अन्वेषण के लिए भी हमलोग सरकार की ओर ही टकटकी लगाए रहते हैं,उचित नहीं है। कुछ चिंतन अन्वेषण यदि हमलोग कर सकते हैं तो करना चाहिए। हमारा विद्वत समाज अपनी व्यक्तिगत मान्यता और सम्मान ,पुरस्कार को लेकर जितना चिंतित रहता है,यदि वह ऊर्जा हम अपने शास्वत चिंतन की ओर लगाएं तो निश्चितरूप से दशा, दिशा बदलेगी।
सम्प्रति भारत -चीन के मध्य जो तनाव चल रहा है इसी प्रसंग माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं,"भारत तर्क की भूमि है ,न्याय की भूमि है,वाद-विवाद की भूमि।किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से संभव है।" पूर्व में जटिल से जटिल समस्या का समाधान मिथिला के नैयायिकों ने किया है।मिथिला के लोक व्यबहार, लोकोक्ति,फकड़ा,किस्से-कहानी का जब आप विशद अध्ययन,अनुशीलन करेंगे तो न्याय शास्त्र की बहुत सी बात आपको स्वतः समझ में आ जायेगी। एक प्रसंग है एकबार मिथिला में क्षयमास पर विद्वानों क बीच वाद -विवाद हो रहा था।मतैक्य नहीं हो पा रहा था। पं.गोकुलनाथ उपाध्याय का मत अन्य सभी विद्वानों के मत से अलग था।वे क्षय मास का विरोध कर रहे थे।तब समाधान के लिए पं.उमापति उपाध्याय को मध्यस्थ बनाया गया।राजा के द्वारा भी उन्हें विवाद समाधान के लिए अधीकृत किया गया। अपनी बृद्धवस्था और नदी में बाढ़ आने के कारण वे शास्त्रार्थ में भाग नहीं ले सके।उन्होंने निम्न पंक्तियां सभा को प्रेषित की-
"हम अति बुढ़ नदी मरखाहि।
एकटा नाव चढ़ल नहि जाहि।।
हो क्षयमास कहै छथि जत।
से सभ थिक काबिराहक मत।।
गोकुलनाथ कहै छथि जैह।
हमरो सम्मति जानबओएह।।
और सभा में विवाद का अंत हो गया।
एक प्रसंग है भारत के महान कवि विद्यपति बारे में।विद्यापति मिथिला के राजा शिवसिंह के राज्याश्रित कवि थे,वे उनके अनन्य मित्र भी थे।एकबार दिल्ली के सुल्तान ने राजा शिव सिंह को बंदी बना लिया विद्यपति अपने राजा को छुड़ाने केलिए सुल्तान के दरबार में चले गए।सुल्तान ने विद्यपति को एक बक्से में बंद कर दिया और कहा एक स्त्री आग जलायेगी आप बिना देखे कविता में सटिक वर्णन करिये।यदि इस दृश्य का सटीक वर्णन कर देंगे तो आपके राजा को छोड़ दिया जायेगा,साथ ही राज्य भी वापस कर दिया जायेगा।
"सजनि, निहुरि फुकु आगि
तोहर कमल भ्रमर मोर देखल,मदन उठल जागि
जौं तोहें भामिनि भवन जयबह,अयबह कओन बेला
जौं एहि संकट सँ जीब बाँचत, होएत लोचन मेला
राजा शिव सिंह बंधन मोचल,तखने सुकवि जिला।"
सुन्दर स्त्री के आग जलाने का एकदम सटीक वर्णन कवि विद्यपति ने कियाऔर सुल्तान की कैद से अपने राजा और राज्य को छुड़ा लाया।ये है मिथिला की ज्ञान परम्परा।
एक प्रसंग है भारत के महान कवि विद्यपति बारे में।विद्यापति मिथिला के राजा शिवसिंह के राज्याश्रित कवि थे,वे उनके अनन्य मित्र भी थे।एकबार दिल्ली के सुल्तान ने राजा शिव सिंह को बंदी बना लिया विद्यपति अपने राजा को छुड़ाने केलिए सुल्तान के दरबार में चले गए।सुल्तान ने विद्यपति को एक बक्से में बंद कर दिया और कहा एक स्त्री आग जलायेगी आप बिना देखे कविता में सटिक वर्णन करिये।यदि इस दृश्य का सटीक वर्णन कर देंगे तो आपके राजा को छोड़ दिया जायेगा,साथ ही राज्य भी वापस कर दिया जायेगा।
"सजनि, निहुरि फुकु आगि
तोहर कमल भ्रमर मोर देखल,मदन उठल जागि
जौं तोहें भामिनि भवन जयबह,अयबह कओन बेला
जौं एहि संकट सँ जीब बाँचत, होएत लोचन मेला
राजा शिव सिंह बंधन मोचल,तखने सुकवि जिला।"
सुन्दर स्त्री के आग जलाने का एकदम सटीक वर्णन कवि विद्यपति ने कियाऔर सुल्तान की कैद से अपने राजा और राज्य को छुड़ा लाया।ये है मिथिला की ज्ञान परम्परा।
मिथिला के विद्वानों का न्याय और मीमांशा प्रिय विषय रहा है। यहाँ सारे निर्णय तर्क और ज्ञान के आधार पर ही लिए जाते रहे हैं। तुर्क और मुग़ल राज्य से पहले भारत के अधिकांश राजा न्याय व्यवस्था के सञ्चालन के लिए मिथिला के विद्वानों को राज्याश्रय देकर रखते थे या समस्या होने पर विद्वानों को बुलाया जाता थे। मुग़ल सलतनत में न्यायब्यवस्था अमीन और फौजदार चलाते थे ।यदा-कदा वे भी नैयायिकों की मदद लेते थे। अंग्रेजीराज में तो विद्वानों को विधिवत नियुक्त किया जाता था।म.म सचल मिश्र का लिखा हुआ निर्णय आज भी बिहार रिसर्च सोसाइटी में आज भी सुरक्षित है।
अंगेजों को संस्कृत का ज्ञान नहीं था। 1789ई. में पूर्णिया के कलक्टर Henary Thomas Colebrooke ने धमदाहा निवासी म.म.चित्रपति झाऔर म.म.श्याम सुंदर ठाकुर से संस्कृत सीखी। कोलब्रूक की प्रेरणा से कोलकाता में सर विलियम जोन्स कई शीर्षस्थ विद्वानों से न्यायालय के लिए उपयोगी धर्मशाश्त्रों को संग्रहित किया। पहले फ़ारसी में फिर अंग्रेजी में उसका अनुवाद कराया।इसी के आधार पर आज भारतीय दण्ड संहिता(IPC) दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC )व्यवहार प्रक्रिया संहिता(CPC) बनाया गया।आज तक इसी आधार पर भारतीय न्याय प्रणाली काम कर रहा है।अंग्रेजों ने तीन सदंर्भ ग्रन्थ भी चयन किये
1.चंडेश्वर महथा कृत'विवाद रत्नाकर
2.वाचस्पति मिश्र कृत'विवाद चिंतामणि
3.मिशरू मिश्र कृत 'विवादचंद्र '
इसी को आधार मानकर भारतीय संसद ने हिन्दू कोड बिल पास किया।
सम्प्रति मिथिला के लोग अपनी ज्ञान परम्परा से विमुख हुए हैं ,आर्थिक विपन्नता के कारण मिथिला की प्रतिभा यत्र-तत्र भटकने को मजबूर है। जिस भाषा में 800 वर्ष पूर्ब ज्योतिरीश्वर जैसे महान गद्यकार हुए,विद्यापति जैसे महान जनकवि हुए उस भाषा के नौनिहाल मातृभाषा के पठन -पाठन से वंचित है,जो चिंता का विषय है।उससे भी चिंता का विषय है यहाँ के लोग अपनी भाषा और संस्कृति से तीव्रता से विमुख हो रहे हैं,उन्हें अपने धरोहर पर गौरव गरिमा का बोध समाप्त हो रहा है । अपनी प्रतिभा और ऊर्जा को अपनी भूमि पर विकसित होने का अवसर मिले ऐसे वातावारण का हम निर्माण करें जिससे उत्तरोत्तर अपने ज्ञान का उपयोग कर सकें। दुनियां के समक्ष जो संवाद का संकट है, असहिष्णुता का संकट है,उसका निवारण हो सके। ये निर्विवाद है किै दुनियां के वर्तमान संकट का समाधान भारतीय दर्शन में है। भारतीय दर्शन को ढूंढ़ने के लिए आपको जड़ में आना होगा,मिथिला आना होगा।
आइये अयाची प्रसंग पर विमर्श करते हुए आगे बढ़ें नवीन संकल्प, नये अध्याय का सृजन करें।
अंगेजों को संस्कृत का ज्ञान नहीं था। 1789ई. में पूर्णिया के कलक्टर Henary Thomas Colebrooke ने धमदाहा निवासी म.म.चित्रपति झाऔर म.म.श्याम सुंदर ठाकुर से संस्कृत सीखी। कोलब्रूक की प्रेरणा से कोलकाता में सर विलियम जोन्स कई शीर्षस्थ विद्वानों से न्यायालय के लिए उपयोगी धर्मशाश्त्रों को संग्रहित किया। पहले फ़ारसी में फिर अंग्रेजी में उसका अनुवाद कराया।इसी के आधार पर आज भारतीय दण्ड संहिता(IPC) दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC )व्यवहार प्रक्रिया संहिता(CPC) बनाया गया।आज तक इसी आधार पर भारतीय न्याय प्रणाली काम कर रहा है।अंग्रेजों ने तीन सदंर्भ ग्रन्थ भी चयन किये
1.चंडेश्वर महथा कृत'विवाद रत्नाकर
2.वाचस्पति मिश्र कृत'विवाद चिंतामणि
3.मिशरू मिश्र कृत 'विवादचंद्र '
इसी को आधार मानकर भारतीय संसद ने हिन्दू कोड बिल पास किया।
सम्प्रति मिथिला के लोग अपनी ज्ञान परम्परा से विमुख हुए हैं ,आर्थिक विपन्नता के कारण मिथिला की प्रतिभा यत्र-तत्र भटकने को मजबूर है। जिस भाषा में 800 वर्ष पूर्ब ज्योतिरीश्वर जैसे महान गद्यकार हुए,विद्यापति जैसे महान जनकवि हुए उस भाषा के नौनिहाल मातृभाषा के पठन -पाठन से वंचित है,जो चिंता का विषय है।उससे भी चिंता का विषय है यहाँ के लोग अपनी भाषा और संस्कृति से तीव्रता से विमुख हो रहे हैं,उन्हें अपने धरोहर पर गौरव गरिमा का बोध समाप्त हो रहा है । अपनी प्रतिभा और ऊर्जा को अपनी भूमि पर विकसित होने का अवसर मिले ऐसे वातावारण का हम निर्माण करें जिससे उत्तरोत्तर अपने ज्ञान का उपयोग कर सकें। दुनियां के समक्ष जो संवाद का संकट है, असहिष्णुता का संकट है,उसका निवारण हो सके। ये निर्विवाद है किै दुनियां के वर्तमान संकट का समाधान भारतीय दर्शन में है। भारतीय दर्शन को ढूंढ़ने के लिए आपको जड़ में आना होगा,मिथिला आना होगा।
आइये अयाची प्रसंग पर विमर्श करते हुए आगे बढ़ें नवीन संकल्प, नये अध्याय का सृजन करें।
Thursday, August 17, 2017
Tuesday, August 15, 2017
Squeezed by an India-China Standoff, Bhutan Holds Its Breath - The New York Times
Squeezed by an India-China Standoff, Bhutan Holds Its Breath - The New York Times: "India says it is acting on Bhutan’s behalf in the standoff. But its intervention has not resulted in much gratitude here. On the contrary, many in Bhutan feel that India’s protective embrace has become suffocating."
Biased against India, TheNewYorkTimes
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Biased against India, TheNewYorkTimes
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Saturday, August 5, 2017
Defenders of Varna – Christophe Jaffrelot
Defenders of varna – The Indian Express:
Christophe Jaffrelot being a French political scientist doesn't understand Indian society. Caste has played an eu-functional role in the society, its politicisation a dysfunctional role. Indian individualism is different from the Western one. In Indian philosophy individualism has been much glorified: sacrifice yourself for the family, sacrifice the family for the Kula, the Kula for the village, the village for the Rashtra and everything for Atma.
Christophe Jaffrelot being a French political scientist doesn't understand Indian society. Caste has played an eu-functional role in the society, its politicisation a dysfunctional role. Indian individualism is different from the Western one. In Indian philosophy individualism has been much glorified: sacrifice yourself for the family, sacrifice the family for the Kula, the Kula for the village, the village for the Rashtra and everything for Atma.
Wednesday, August 2, 2017
Why is great philosopher Kautilya not part of Pakistan’s historical consciousness? - Blogs - DAWN.COM
Why is great philosopher Kautilya not part of Pakistan’s historical consciousness? - Saif Tahir - Blogs - DAWN.COM:
Nothing can describe this irony better than The Indus Saga , in which Aitzaz Ahsan writes in the preface: “… a nation in denial of its national identity is unfortunate. But when it chooses to adopt an extra-territorial identity, it becomes a prisoner of propaganda and myths... This is the Pakistan of today, not the Pakistan of its founders. Identity is at the heart of its problem”.
If Pakistan is to come out of its tortuous identity crisis, it needs to accept its non-Muslim history as its own. Recognising someone as important as Chanakya will have to be part of the long process.
जो गुड़ से मरे उसे जहर क्यों दें ? - चाणक्य की सोच
Wednesday, July 12, 2017
महराज रामेश्वर सिंह
श्री Bhawesh Chandra Mishra जीक देवाल सँ
☆महान साधक महाराजाधिराज 'रमेश्वर सिंह '☆
☆महान साधक महाराजाधिराज 'रमेश्वर सिंह '☆
(साधना -पक्ष)
पुष्प -5 ॐ
सिद्धि-कथा --
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राजनगर मे विशाल मंदिर बनाओल गेल। ओहि मे माॅ काली के मूर्तिक स्थापना होयबाक छल।लोकक करमान लागल रहै।अजमेर सॅ छौ महिना मे बनि क' मूर्ति आयल रहए।सहस्त्रो ब्राह्मणक मंत्रोच्चार सॅ आकाश गुंजायमान भ' गेल ।108 ब्राह्मण तॅ मूर्ति बनबाक काले सॅ पुरश्चरण मे लागल रहथि ।ओहि दिन तॅ सहस्त्रोक संख्या भ' गेल छल।
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राजनगर मे विशाल मंदिर बनाओल गेल। ओहि मे माॅ काली के मूर्तिक स्थापना होयबाक छल।लोकक करमान लागल रहै।अजमेर सॅ छौ महिना मे बनि क' मूर्ति आयल रहए।सहस्त्रो ब्राह्मणक मंत्रोच्चार सॅ आकाश गुंजायमान भ' गेल ।108 ब्राह्मण तॅ मूर्ति बनबाक काले सॅ पुरश्चरण मे लागल रहथि ।ओहि दिन तॅ सहस्त्रोक संख्या भ' गेल छल।
किन्तु, महाराज प्रातःकाले सॅ साधना-कक्ष मे बन्द रहथि ।मूर्ति, वेदी पर स्थापित भेल।ओहि मे आॅखि लगेबाक समय आबि गेल ।महाराज अपन कक्ष सॅ निकललाह आ पुरश्चरणकर्ता ब्राह्मण केॅ सावधान कएलनि , पुनः साधना-कक्ष मे चलि गेलाह।भगवती के आॅखि लगाओल गेलैन्ह।मुदा ई की ! जे मिस्त्री आॅखि लगौलक ओकर दुनू हाथ ऊपर के ऊपरे रहि गेलै।ओ असहाय अवस्था मे ठाढे रहि गेल, ने घूमि सकै छल आ ने बैसि सकै छल ।ओकरा मुॅह सॅ बोली तक नै बहराइ।
महाराज एलाह ।किछु काल मूर्ति दिस देखि, झटाक सॅ मिस्री के हाथ पकड़ि नीचाॅ क' देलनि।ओहि स्थान सॅ ओकरा खींचि लेलाह।बस, फेर ओ पहिने जकाॅ भ'गेल ।भीड़ जय-जयकारक निनाद सॅ आकाश गुंजित क' देलक ।
एकबेर कमला नदी में बाढि आयल छलै। नदी ओहि भू-भाग के काटैत 'काली मंदिर ' दिस बढऽ लागल ।महाराज के खबरि भेलैन ।ओ आबि क' कमला मे स्नान केलैन, किछु जप क' भीजले धोती पहिरने जेना-जेना घूमैत गेला ,तहिना-तहिना कमला नदी के धार सेहो घूमि गेल।ओहि धारक एहि प्रकारक घुमाव देखि लोक चकित भ' गेल रहए।
●महाप्रयाण -;-
जखन महाराज अंतिम बेर बीमार पड़ला त' हुनकर बीमारी उग्र रूप ध' लेलक। डाक्टरक राय भेलैन जे हुनका निकट क्यो नहि आबथि ।एतऽ धरि जे रानी साहिबा सेहो नहि ।ओहि समय देख-भालक सब भार हुनक प्राइवेट सेक्रेटरी पं• मथुरा प्रसाद दीक्षित के सौंपि देल गेल ।दीक्षित जी बहुत सावधानी सॅ कक्षक पहरा देब' लगलाह ।जाहि दिन महाराजक मृत्यु भेलैन, दीक्षित जी निगरानी मे रहथि ।
जखन महाराज अंतिम बेर बीमार पड़ला त' हुनकर बीमारी उग्र रूप ध' लेलक। डाक्टरक राय भेलैन जे हुनका निकट क्यो नहि आबथि ।एतऽ धरि जे रानी साहिबा सेहो नहि ।ओहि समय देख-भालक सब भार हुनक प्राइवेट सेक्रेटरी पं• मथुरा प्रसाद दीक्षित के सौंपि देल गेल ।दीक्षित जी बहुत सावधानी सॅ कक्षक पहरा देब' लगलाह ।जाहि दिन महाराजक मृत्यु भेलैन, दीक्षित जी निगरानी मे रहथि ।
--- रात्रिक समय छलैक ।ओहि समय हुनका प्रतीत भेलैन जे महाराजक शैय्याक निकट क्यो धीरे -धीरे रुदन क' रहल अछि ।ओ चौंकि गेला, महराज सोचला जे महारानी साहिबा नै त' आबि गेलीह?
दीक्षित जी जल्दी -जल्दी पहुँचला त' देखै छथि जे ओत' क्यो नहि छल।
दीक्षित जी जल्दी -जल्दी पहुँचला त' देखै छथि जे ओत' क्यो नहि छल।
किछु कालक बाद फेर ओहने रुदनक स्वर सुनाइ पड़लैन ।एहि बेर ठीक-ठीक सुनबा मे एलैन जे मंदिर मे सॅ रुदनक स्वर आबि रहल अछि ।महाराजक कक्ष हुनकर कुल-देवी भगवती ' कंकालिनी 'मंदिर के निकट छलैन ।दीक्षित जी मंदिर पहुँचला मुदा मंदिर मे क्यो नहि छल।
आब ओ सोचला आ ' ठीके सोचला जे क्यो दोसर नहि , जगदंबा स्वयं अपन पुत्रक लेल कानि रहली अछि ।'
ओही क्षण जगदंबाक महान साधक पुत्र बहुत विकल भ' गेलाह'आ किछु क्षणक बाद महाराजक प्राणान्त भ' गेलैन।
भारतवर्षक एकटा महान साधक, महा-सिद्ध -पुरुषक "महा-प्रयाण भ' गेल ।
ॐपंच पुष्पांजलि ॐ
भवेश चन्द्र मिश्र 'शिवांशु '
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
Monday, July 10, 2017
महाराजा रामेश्वर सिंह
'via Blog this☆महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह ☆
(साधना -पक्ष)
पुष्प --4
महाराज वास्तव मे फल-श्रुति मे वर्णित साधकक मूर्त रूप छलाह।प्रत्येक तीर्थ-स्थान पर जा कऽ साधना केलैन, मुदा मुख्य रूप सॅ 'कामाख्या' मे साधना संपन्न भेलैन ।कामाख्या पीठक सब सॅ ऊॅच चोटी ' भुवनेश्वरी ' पर हुनकर राजमहल बनल छल,जत'रहि क' ओ साधना करै छलाह।महाराजक बाद क्यो ओहन साधक नहि भेल जे प्रत्यक्ष महा-पीठ के अनावृत क' निशार्चन क' सकए।
रात्रि नौ बजे सॅ प्रातः तीन बजे धरि महाराज कतेको बेर कामाख्या महापीठ पर अर्चन केलैन ।
ओहि समय मे महा-पीठ पर सॅ डेढ़ मनक सुवर्णक ढक्कन हटा देल जाइ छलै। महा-पीठक आवरण रहित स्वरूप रक्त-वर्ण अपराजिता पुष्प के छैन एहेन कहल जाइत अछि।ओत'सब पात्र सुवर्ण के स्थापित होइत छल, आ ओकर त्रिपद सेहो सुवर्णे के रहैत छलै।
रात्रि नौ बजे सॅ प्रातः तीन बजे धरि महाराज कतेको बेर कामाख्या महापीठ पर अर्चन केलैन ।
ओहि समय मे महा-पीठ पर सॅ डेढ़ मनक सुवर्णक ढक्कन हटा देल जाइ छलै। महा-पीठक आवरण रहित स्वरूप रक्त-वर्ण अपराजिता पुष्प के छैन एहेन कहल जाइत अछि।ओत'सब पात्र सुवर्ण के स्थापित होइत छल, आ ओकर त्रिपद सेहो सुवर्णे के रहैत छलै।
मिथिला में एहन महान तंत्र साधक बहुत कम भेल छथि ।ओ एतेक उच्च स्तर पर पहुॅचि माँ काली संग एकाकार भ'गेल रहथि।
सन् 1924 के प्रसंग अछि ।तत्कालीन वायसराय महाराज के भेट हेतु बजौने रहथिन ।महाराज दिल्ली गेलाह,अगिले दिन नौ बजे भेटक समय निर्धारित छल।
महाराज प्रातः उठि पूजा मे एहन तन्मय भेला जे समय के ज्ञान नहि रहलैन। वायसराय लग एक घंटा विलंब सॅ पहुॅचला।वायसराय समय के पाबंदी नहि रखबाक उलाहना देलकैन ।ओ बाजल 'पूजा करने से कोई फायदा नहीं, व्यर्थ में समय की बर्बादी है।'
सन् 1924 के प्रसंग अछि ।तत्कालीन वायसराय महाराज के भेट हेतु बजौने रहथिन ।महाराज दिल्ली गेलाह,अगिले दिन नौ बजे भेटक समय निर्धारित छल।
महाराज प्रातः उठि पूजा मे एहन तन्मय भेला जे समय के ज्ञान नहि रहलैन। वायसराय लग एक घंटा विलंब सॅ पहुॅचला।वायसराय समय के पाबंदी नहि रखबाक उलाहना देलकैन ।ओ बाजल 'पूजा करने से कोई फायदा नहीं, व्यर्थ में समय की बर्बादी है।'
महाराज सुनैत रहला, जे आवश्यक बात छल कहि क' लौटि गेला ।दोसर दिन महाराज पूजा पर बैसला और ओम्हर वायसराय जत' देखए ततै ओकरा महाराज ध्यानावस्था मे देखाइ देथिन।वायसराय घबरा गेल आ तुरंत महाराजक कोठी पर पहुॅचि ड्राइंग रूम मे बैसि गेल ।बैसिते ओकर आॅखि मुना गेलै , ओकरा आगाॅ पूरा दृश्य आब' लगलै , जाहि मे चींटी सॅ ल' मनुख तक सब मे माॅ कालीक दर्शन होब' लगलै।
महाराज जखन पूजा समाप्त क' ड्राइंग रूम मे एलाह त' ओ बैसल रहए निःस्तब्ध! सब अंग स्थिर ,आॅखि सॅ आनन्दाश्रु के धार बहि रहल छलैक। महाराज मुस्कुराइत ओकर वक्ष-स्थल स्पर्श कएलनि तखन ओकरा होश भेलै।
ओ हाथ जोड़ि लेलक ।महाराज कहलैन - ' पूजा आदि करने का यही फल है,जो आपने देखा है।जिस स्त्री को आपने देखा है वही ईश्वर हैं, जिसमें सारा संसार है।और, जो संसार की सभी वस्तुओं में व्याप्त हैं ।"
ओ हाथ जोड़ि क्षमा माॅगि लेलक ।
ओ हाथ जोड़ि लेलक ।महाराज कहलैन - ' पूजा आदि करने का यही फल है,जो आपने देखा है।जिस स्त्री को आपने देखा है वही ईश्वर हैं, जिसमें सारा संसार है।और, जो संसार की सभी वस्तुओं में व्याप्त हैं ।"
ओ हाथ जोड़ि क्षमा माॅगि लेलक ।
■■
क्रमशः :-- पुष्प -5 मे
क्रमशः :-- पुष्प -5 मे
भवेश चन्द्र मिश्र
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
'नक्षत्र निकेतन '
कबड़ाघाट, दरभंगा।
Saturday, July 8, 2017
सिद्ध महाराजा रामेश्वर सिंह
'via Blog this'From Shri Bhawesh Chandra Mishra ji's wall
तपस्वी ☆महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह☆
(साधना -पक्ष)
पुष्प - 2
(साधना -पक्ष)
पुष्प - 2
'दिन -चर्या'------
______
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मिथिलाधिपति जहिना कुशल, दक्ष एवं यशस्वी राज-कार्य मे छला, तहिना साधना मे निपुण एवं सिद्ध छला। महाराज नित्य दू बजे रात्रि मे उठि शय्या-कृत्योपरान्त शय्ये पर एक आवृति 'सप्तशतीक' पाठ क' लैथि।ओकर बाद साढे तीन बजे तक स्नानादि सॅ निवृत्त भ' वैदिक संध्या एवं सहस्त्र गायत्री जप क' एक मन चाउर के नित्य पिण्डदान करै छला।ओकर बाद पार्थिव पूजा ब्राह्म-मुहुर्त के प्रदोष -काल में क' भगवती मंदिर मे अबै छला ।ओतऽ ओ तांत्रिकी संध्यादि क' न्यासादि कएलाक उपरांत पात्र-स्थापन करथि।ओ सब पात्र सुवर्ण-मण्डित नर-कपाल के रहैत छल।
आब महाराज स्वयं मुण्ड-माला धारण क' भगवतीक पूजन, आवरण-पूजनादि , जप,पञ्चांग-पाठ कऽ सहस्त्रनाम सॅ पुष्पांजलि दैत छला।जेकर विषय मे ककारादि सहस्त्रनाम में लिखल अछि--------
' विल्व-पत्र सहस्त्राणि करवीराणि वै तथा
प्रति नाम्ना पूजयेद्धि तेन काली वर-प्रदा।'
प्रति नाम्ना पूजयेद्धि तेन काली वर-प्रदा।'
ओकर पश्चात कुमारी, सुवासिनी, वटुक, सामयिक के पूजन-तर्पण कऽ महाप्रसाद ग्रहण केलाक पश्चात करीब दस बजे धरि तैयार भ' जाथि ।
एक घंटा विश्रामक पश्चात 11बजे सॅ 3•30बजे धरि राज-कार्य देखै छला। ओकर बाद पुनः स्नानादि क' वैदिक संध्योपरांत प्रदोष काल मे पार्थिव पूजन क' महा-निशा मे भगवतीक सांगोपांग पूजन करथि।
'दंत-माला जपे कार्या गले धार्या नृ-मुण्डजा,
काली-भक्तः भवेत सो हि धन्य-रूपः स एवं तु ।'
काली-भक्तः भवेत सो हि धन्य-रूपः स एवं तु ।'
अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व, जाहि सॅ अभिभूत भ' सर ' जोन वूडरफ ' हिनका सॅ दीक्षा लेलैन ।'शिव चन्द्र भट्टाचार्य ' के सेहो दीक्षा देबाक मुख्य श्रेय महाराजे के छनि ।
क्रमशः - पुष्प -3 मे
भवेश चन्द्र मिश्र 'शिवांशु'
नक्षत्र निकेतन, कबड़ाघाट
नक्षत्र निकेतन, कबड़ाघाट
महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह
केहन मनोरम दृश्य उपस्थित होइत रहल छल हैत।जतऽ सामने सत्ताइस सुवर्ण-मण्डित कपाल -पात्र रहैत छल।अर्घ्य पर श्वेत चमकैत दक्षिणावर्त शंखक अर्घ्य -पात्र ,दाहिना मे शांभवी-शक्ति एवं उज्ज्वल विशालाकार त्रिशूल आ वायाॅ मे महिमामयी दीक्षाभिषिक्ता पूज्याशक्ति, सामने सुवर्ण कलश एवं नीलम अथवा महाशंख पर बनल ' आद्या-यंत्र '।
पूजन सामग्रीक तॅ अंबार लागल रहैत छल।कहल जाइछ जे जाहि नर-कपाल पर साक्षी दीप जरैत छल ओ ताम्बूल (पान) खाइत छल, हॅसैत छल, आ शुद्ध -तीर्थादि ग्रहण करैत छल।काली तंत्र कहैत अछि---
' जीवितं ब्रह्म-रंध्रे तु दीपं प्रज्वालयेत् सुधीः '
क्रमशः शेष पुष्प -2 मे
भवेश चन्द्र मिश्र ' शिवांशु '
नक्षत्र निकेतन, कबड़ाघाट,
दरभंगा।
मो• 9835003759
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Wednesday, July 5, 2017
Sadhguru on Gurus – Ashtavakra and the Enlightened King - The Isha Blog
Sadhguru on Gurus – Ashtavakra and the Enlightened King - The Isha Blog:
Ashtavakra and Brahmgyani King Janak Videh of Mithila
Ashtavakra and Brahmgyani King Janak Videh of Mithila
Monday, July 3, 2017
Towards unfreedom - Amartya Sen
Towards unfreedom | The Indian Express: "Historically, India has certainly been a refuge for persecuted minorities from many different lands — providing shelter and new homes to hounded Jews from the first century, harassed Christians from the fourth century, fleeing Parsis from the late seventh century and oppressed Bahais from the 19th century."
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Sunday, June 25, 2017
Memories of another June
Memories of another June | The Indian Express: "The writer is a constitutional jurist and senior advocate to the Supreme Court." Add father of a Supreme Court judge.
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Saturday, June 10, 2017
The battle for values | The Indian Express
The battle for values | The Indian Express: "As the notion of a Hindu Rashtra cannot take a tangible form, the Sangh Parivar has been consistently running a hidden agenda, which has produced a strait-laced and dogmatic ideology. As a result, a Hindu Rashtra is being sought to be established by targeting Muslims, Dalits, Christians and other minorities and by demolishing the principle of one man, one vote, one value bestowed by the Constitution. The violent religious frenzy of the “gau rakshaks” is a realisation of the Hindu Rashtra agenda."
To me the talk Hindu Rashtra is a protest against the pseudo-secular theory and practice of India's Liberal, Left intellectuals-politicians. In Hindu Rashtra no community, no religion, no section would be discriminated against. It won't be a theocratic state.
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To me the talk Hindu Rashtra is a protest against the pseudo-secular theory and practice of India's Liberal, Left intellectuals-politicians. In Hindu Rashtra no community, no religion, no section would be discriminated against. It won't be a theocratic state.
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Sunday, June 4, 2017
Tuesday, May 30, 2017
Wednesday, May 24, 2017
Saturday, May 20, 2017
Friday, May 19, 2017
Thursday, May 11, 2017
Wednesday, May 10, 2017
Wednesday, May 3, 2017
In Fact: Behind the politics of impeachments in Nepal, a culture of ‘fixed’ appointments | The Indian Express
In Fact: Behind the politics of impeachments in Nepal, a culture of ‘fixed’ appointments |
In tune with the traditional Nepalese Administrative Theory of आगू बहाली, पाछू बर्खास्त |
In tune with the traditional Nepalese Administrative Theory of आगू बहाली, पाछू बर्खास्त |
Monday, May 1, 2017
Historian Timothy Snyder on Donald Trump.
"American democracy is in crisis. The election of Donald Trump feels like a state of emergency made normal.
Trump has threatened violence against his political enemies"
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Trump has threatened violence against his political enemies"
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Sunday, April 23, 2017
A justice more complete Fiat Justitia Pereat Mundus
A justice more complete | The Indian Express: "The Latin maxim fiat justitia ruat cælum (let justice be done even if the heavens fall),"
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Wednesday, April 19, 2017
India's Integrated Hierarchical Judiciary
निम्न न्यायालय का संबंध तथ्यों से है, उच्च न्यायालय का संबंध निर्णय की त्रुटियों से है तथा उच्चतम न्यायालय का संबंध बुद्धिमत्ता से है, २) किन्तु उच्चतम न्यायालय भी गलती कर सकता है इसलिए आवश्यक है कि उस त्रुटि को ठीक करने की राह खुली रखी जाए| यह अपने निर्णय का पुनर्विलोकन है|
Lower courts examine facts, the High Court examines the fault in judgment, the Supreme Court is supposed to be the repository of Wisdom. 2) But as the SC may also err it was thought necessary to give the SC opportunity to mend its mistake through Review of its own decision.
Wednesday, April 12, 2017
BJP, not Congress-mukt
BJP, not Congress-mukt :
How could Christophe Jaffrelot refer to Pt GB Pant, Pt Ravi Shankar Shukla , Sampoornanand, Guljarilal Nanda as turncoats?
How could Christophe Jaffrelot refer to Pt GB Pant, Pt Ravi Shankar Shukla , Sampoornanand, Guljarilal Nanda as turncoats?
Monday, April 10, 2017
Saturday, April 8, 2017
Tuesday, April 4, 2017
Monday, April 3, 2017
Sunday, April 2, 2017
Wednesday, March 29, 2017
Gideon Rachman on 'Easternization': What Does a China-Dominated World Look Like? - The Atlantic
Gideon Rachman on 'Easternization': What Does a China-Dominated World Look Like? - The Atlantic: "“rivalries among the nations of the Asia-Pacific region will shape global politics"
Rivalries among the nations of the Asia-Pacific region will shape global politics.
Rivalries among the nations of the Asia-Pacific region will shape global politics.
Friday, March 17, 2017
Thursday, March 9, 2017
Sunday, March 5, 2017
Democracy in America: How Is It Doing?
Democracy in America: How Is It Doing? - The New York Times: As seen by 1571 Political Scientists.
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Tuesday, February 28, 2017
What We Talk About When We Talk About the Media (Jon Stewart Edition) - The Atlantic
What We Talk About When We Talk About the Media (Jon Stewart Edition) - The Atlantic: "(Did you know that, if you rearrange the letters of “the media,” you get the phrase “‘them’ idea”?"
Thursday, February 23, 2017
Somnath Mandir, Sourath
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान पाने वाले सोमनाथ मन्दिर का इतिहास बहुत कुछ भारत के इतिहास की कहानी है | कहते हैं की सौराष्ट्र का सोमनाथ मन्दिर भारत का सबसे समृद्ध मन्दिर था जिसके पास १००० गाँवें थीं| १००० ब्राह्मण यहाँ पूजा-पाठ में लगे रहते थे| अर्चना के लिए जल गंगा से और पूजा के लिए फूल काश्मीर से आने की किंवदंती है| मन्दिर में सोने के भारी जंजीर से बंधा घंटी बजता था |
जब १०२६ ईस्वी में मोहम्मद गज़नी ने इस मन्दिर को लूटा और धास्त कर दिया तब कहते है कि कुछ ब्राह्मण उस शिवलिंग की पवित्रता बचाए रखने के लिए उसे जंगलों से आच्छादित मिथिला ले आए | वहाँ उन्होंने सौराष्ट्र नाम का गाँव बसाया और सोमनाथ शिवलिंग की स्थापना की| कालांतर में सौराष्ट्र सौराठ बन गया, परंतु सोमनाथ मन्दिर और शिवलिंग आज भी है|
मन्दिर छोटा है और प्राचीन मन्दिर ध्वस्त भी हो चुका है| ग्रामीणों के प्रयास से एक नया मन्दिर बनाया गया| परन्तु शिवलिंग अभी भी है| मन्दिर के मध्य में एक कुंड में शिवलिंग स्थापित है| शिवलिंग का अधिकांश हिस्सा जलकुण्ड में डूबा रहता है| मन्दिर ऊंचे स्थान पर है, कमला और जीबछ नदियाँ दूर बहती फिर भी लिंग का बड़ा हिस्सा जल में डूबा रहना लोगों को अचंभित करता है| तीन फीट लम्बे, चौड़े और गहरे कुण्ड में लगभग दस इंच व्यास के काले पत्थर के शिवलिंग का केवल थोड़ा सा हिस्सा ऊपर दिखाई देता है| कभी-कभी इसके जलस्तर में कमी भी आती है, तब गहराई में नीचे यह अनगढ़ पत्थर की पीठिका पर स्थित दिखाई देता है | शिवलिंग के ऊपर का भाग ऊर्ध्वमुख चंद्राकर एवं कटावदार है| बीच में एक सूक्ष्म दरार रेखा ल्म्बबत नीचे की ओर गई दिखती है| मन्दिर के एक कोने में नंदी मूर्ति और दूसरे कोने में एक भग्न आवक्ष मूर्ति रखी हुई है|
मधुबनी से सात किलोमीटर और एन एच १०५ से एक किलोमीटर दूर अवस्थित सौराठ मैथिल ब्राह्मणों की वैवाहिक सभा के चलते देश-विदेश में प्रतिष्ठित है |
वैसे मिथिला पंचदेवोपासक है, परन्तु शक्ति और शिव का यहाँ विशेष स्थान है| कपिलेश्वर स्थान, शिलानाथ, विदेश्वर महादेव यहाँ के प्रमुख शैव स्थल हैं, महाकवि विद्यापति ने अपने नचारी के द्वारा शिव भजन को यहाँ के जन-जन तक पहुंचा दिया | डोकहर का राज-राजेश्वरी मन्दिर शिव-शक्ति का संयुक्त मन्दिर है|
यहाँ यह तथ्य ध्यातव्य है कि मैथिलों और गुजरातियों में बहुत साम्य है, वाणिज्यिक कुशलता को छोड़ कर | गुजरात से मध्य प्रदेश होते हुए ब्राह्मण मिथिला पहुंचे | इसलिए आज भी मैथिल ब्राह्मणों के मूल ग्राम में मध्य प्रदेश के स्थानों का जिक्र होता है| क्या यही ब्राह्मण सोमनाथ के मौलिक शिवलिंग को लेकर मिथिला आए ?
सन्दर्भ ग्रन्थ
इंद्र नारायण झा - मिथिला दिग्दर्शन , विद्यापति परिषद् , रामगढ़ , १९८४.
सुनील कुमार मिश्र , दामोदर प्रकाशन, सतलखा , मधुबनी , २०१०
Hindupedia
जब १०२६ ईस्वी में मोहम्मद गज़नी ने इस मन्दिर को लूटा और धास्त कर दिया तब कहते है कि कुछ ब्राह्मण उस शिवलिंग की पवित्रता बचाए रखने के लिए उसे जंगलों से आच्छादित मिथिला ले आए | वहाँ उन्होंने सौराष्ट्र नाम का गाँव बसाया और सोमनाथ शिवलिंग की स्थापना की| कालांतर में सौराष्ट्र सौराठ बन गया, परंतु सोमनाथ मन्दिर और शिवलिंग आज भी है|
मन्दिर छोटा है और प्राचीन मन्दिर ध्वस्त भी हो चुका है| ग्रामीणों के प्रयास से एक नया मन्दिर बनाया गया| परन्तु शिवलिंग अभी भी है| मन्दिर के मध्य में एक कुंड में शिवलिंग स्थापित है| शिवलिंग का अधिकांश हिस्सा जलकुण्ड में डूबा रहता है| मन्दिर ऊंचे स्थान पर है, कमला और जीबछ नदियाँ दूर बहती फिर भी लिंग का बड़ा हिस्सा जल में डूबा रहना लोगों को अचंभित करता है| तीन फीट लम्बे, चौड़े और गहरे कुण्ड में लगभग दस इंच व्यास के काले पत्थर के शिवलिंग का केवल थोड़ा सा हिस्सा ऊपर दिखाई देता है| कभी-कभी इसके जलस्तर में कमी भी आती है, तब गहराई में नीचे यह अनगढ़ पत्थर की पीठिका पर स्थित दिखाई देता है | शिवलिंग के ऊपर का भाग ऊर्ध्वमुख चंद्राकर एवं कटावदार है| बीच में एक सूक्ष्म दरार रेखा ल्म्बबत नीचे की ओर गई दिखती है| मन्दिर के एक कोने में नंदी मूर्ति और दूसरे कोने में एक भग्न आवक्ष मूर्ति रखी हुई है|
मधुबनी से सात किलोमीटर और एन एच १०५ से एक किलोमीटर दूर अवस्थित सौराठ मैथिल ब्राह्मणों की वैवाहिक सभा के चलते देश-विदेश में प्रतिष्ठित है |
वैसे मिथिला पंचदेवोपासक है, परन्तु शक्ति और शिव का यहाँ विशेष स्थान है| कपिलेश्वर स्थान, शिलानाथ, विदेश्वर महादेव यहाँ के प्रमुख शैव स्थल हैं, महाकवि विद्यापति ने अपने नचारी के द्वारा शिव भजन को यहाँ के जन-जन तक पहुंचा दिया | डोकहर का राज-राजेश्वरी मन्दिर शिव-शक्ति का संयुक्त मन्दिर है|
यहाँ यह तथ्य ध्यातव्य है कि मैथिलों और गुजरातियों में बहुत साम्य है, वाणिज्यिक कुशलता को छोड़ कर | गुजरात से मध्य प्रदेश होते हुए ब्राह्मण मिथिला पहुंचे | इसलिए आज भी मैथिल ब्राह्मणों के मूल ग्राम में मध्य प्रदेश के स्थानों का जिक्र होता है| क्या यही ब्राह्मण सोमनाथ के मौलिक शिवलिंग को लेकर मिथिला आए ?
सन्दर्भ ग्रन्थ
इंद्र नारायण झा - मिथिला दिग्दर्शन , विद्यापति परिषद् , रामगढ़ , १९८४.
सुनील कुमार मिश्र , दामोदर प्रकाशन, सतलखा , मधुबनी , २०१०
Hindupedia
Monday, February 20, 2017
The Dangers of Talking About an American 'Deep State' -
The Dangers of Talking About an American 'Deep State' - The Atlantic:
'Deep State' refers to elements in bureaucracy and governing institutions' who are deeply committed to 'liberal-Secular' values and resist govt's moves they consider anti-thetical to democracy.
'Deep State' refers to elements in bureaucracy and governing institutions' who are deeply committed to 'liberal-Secular' values and resist govt's moves they consider anti-thetical to democracy.
Wednesday, February 1, 2017
Wednesday, January 18, 2017
Thursday, January 12, 2017
Wednesday, January 11, 2017
Saturday, January 7, 2017
Friday, January 6, 2017
Monday, January 2, 2017
The King and his Ministers
It's said that someone wrote outside the British King's room:
Here lies our Sovereign Lord, the King
Whose words nobody relies on
Who never says a foolish thing
But never does a wise one.
The King retorted:
Because the words are mine, whereas the deeds are of the Ministers. :)
Here lies our Sovereign Lord, the King
Whose words nobody relies on
Who never says a foolish thing
But never does a wise one.
The King retorted:
Because the words are mine, whereas the deeds are of the Ministers. :)
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