Wednesday, December 30, 2020

  पक्षपाती @DainikBhaskar

" १७७५ में ब्रिटिश संसद में राजनीति शास्त्री एडमंड बर्क ने अपने भाषण में तत्कालीन सरकार को आगाह किया था कि वह अमेरिकी उपनिवेशों के नाराज़ लोगों पर बल प्रयोग की ग़लती न करे, क्योंकि बल से शाश्वत सहमति नहीं मिलती और आक्रोश फिर उभरता है। उत्तर भारत के भाजपा शासित राज्य में एक कॉलेज प्रिंसिपल ने 6 छात्रों के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला दर्ज करवाया। कारण, वे कैंपस में... 'ले के रहेंगे, आज़ादी का नारा लगा रहे थे।.... दो दिन पहले प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र के एक व्यक्ति द्वारा उन्हें लिखे गए एक पत्र को को यूपी सरकार को भेजा। इसमें ज़िक्र है कि यूपी में वाहनों पर लिखे जाति सूचक शब्द सामाजिक तनाव बढ़ाते हैं। यूपी सरकार ने ऐसे वाहनों की ज़ब्ती शुरू कर दी। ... जब राज्य शक्ति का भगवाकरण इतने भौंडा तरीक़े से होगा तो आम जनता का भी प्रजातंत्र से ही भरोसा टूटने लगेगा। "

यह है आज के @दैनिकभास्कर का संपादकीय।

पहली बात कि बर्क एक दार्शनिक और राजनीतिज्ञ थे, राजनीति शास्त्री नहीं। उस समय तक राजनीति शास्त्र विषय नहीं बना था।

दूसरी बात कि यदि आज़ाद भारत से ‘लड़के लेंगे आज़ादी’ देशद्रोह नहीं है तो क्या है?

तीसरी बात कि जातीय विद्वेष फैलाने से रोकना 'राज्य शक्ति का भौंडे तरीके से भगवाकरण' कैसे है?

रॉंची में जबसे दैनिक भास्कर आया मैं इसका ग्राहक और पाठक रहा हूँ, परंतु अख़बार का 'भौंडा' पक्षपातपूर्ण रवैया हमें विवश करता है कि इसे नमस्कार कर दिया जाय।

 

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