Saturday, August 26, 2017

मिथिलाक ज्ञान परंपरा


हम अति बूढ़ नदी मरखाहि| 
एक त' नाव चढ़ल नहि जाहि||
हो क्षयमास कहै छथि जत|
से सभ थिक कबीराहाक मत ||
गोकुलनाथ कहै छथि जैह।
हमरो सम्मति जानबओएह।।"
क्षयमासक निर्णयक लेल अधिकृत पंडित उमापतिक वचन|
विद्वता आ' अयाची भेनाई एक्के मुद्राक दू पक्ष अछि|
Dilip Jha is with Ratneshwar Jha and 28 others.
56 mins
मिथिला की ज्ञान परम्परा:अयाची प्रसंग
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भारत की सभ्यता ,संस्कृति ,ज्ञान-विज्ञान और उसके उत्थान-पतन की जब भी चर्चा होगी आप चाहकर भी मिथिला की उपेक्षा नहीं कर सकते,परंतु आज की शासन व्यवस्था मिथिला की जितनी उपेक्षा कर सकता था, किया है। जो बात हमे आलेख के अंत में कहना चाहिए था,मैंने प्रारम्भ में ही कह दिया है क्योंकि मेरे आलेख लिखने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है सत्ता नियामक तक,नीति निर्माताओं तक मिथिला की टिस और पीड़ा पहुंचे।
मिथिला की ज्ञान परम्परा की कुछ दृष्टान्त प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ।सर्वप्रथम मैं म.म.भवनाथ मिश्र का चर्च करना चाहता हूँ। भवनाथ मिश्र मिथिला के ऐसे विद्वान हुए जिन्होंने बिना किसी राज्याश्रय के ,बिना किसी सहयोग के शास्त्र चिंतन किया,सृजन किया।मिश्र महोदय अपने वासस्थान में बचे हुए शेष भूमि को उपजा कर अपनी जीविका चलाया करते थे।कभी किसी से याचना नहीं की। विद्वानों के लिए अपरिग्रह का ऐसा दूसरा उदहारण नहीं मिलता है। इसी गुण के कारण वे अयाची के नाम से प्रसिद्ध हैं। सात सौ बर्षों के पश्चात अयाची स्मरण किये जा रहे हैं।अयाची के जन्मडीह मधुबनी जिला के सरिसब ग्राम में उनकी प्रतिमा स्थापित किया जा रहा है। आगामी 9 सितम्बर 2017 को बिहार के माननीय मुख्यमंत्री प्रतिमा का अनावरण करेंगे। उसी दिन एक दाई (चमाइन)की प्रतिमा का भी अनावरण किया जायेगा। इसी दाई ने अयाची मिश्र की पत्नी का प्रसव कराया था ।अभाव के कारण मिश्र जी की पत्नी दाई को कुछ भी पारिश्रमिक नहीं दे पाई थी,दिया था एक आश्वासन । मेरे इस नवजात पुत्र की पहली कमाई तुम्हारी होगी। यशस्वी पुत्र शंकर अल्प वयस में ही अपनी योग्यता से पुरस्कार के रूप बहुत सा रत्न प्राप्त किया और कथनानुसार ही सारे रत्न ,स्वर्ण उस दाई को दे दिया गया। उसकी महानता देखिये उस रत्न से वह कोठा,सोफा बनवाती,जमीन जायदाद खरीदती,लेकिन उन पैसों से उसने सार्वजानिक उपयोग के लिए एक तालाब खुदबाई।आज भी वो तालाब सरिसब ग्राम में 'चमाइन डाबर' के नाम से जाना जाता है। इसलिए महान है मिथिला की ज्ञान परम्परा। योग्यता और प्रतिभा समाज के लिए धरोहर हैं।
अयाची वर्तमान विद्वत समाजके लिए, अन्वेषण,अनुसन्धान करनेवालों के लिए एक उदहारण हैं। अपने चिंतन ,अन्वेषण के लिए भी हमलोग सरकार की ओर ही टकटकी लगाए रहते हैं,उचित नहीं है। कुछ चिंतन अन्वेषण यदि हमलोग कर सकते हैं तो करना चाहिए। हमारा विद्वत समाज अपनी व्यक्तिगत मान्यता और सम्मान ,पुरस्कार को लेकर जितना चिंतित रहता है,यदि वह ऊर्जा हम अपने शास्वत चिंतन की ओर लगाएं तो निश्चितरूप से दशा, दिशा बदलेगी।
सम्प्रति भारत -चीन के मध्य जो तनाव चल रहा है इसी प्रसंग माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं,"भारत तर्क की भूमि है ,न्याय की भूमि है,वाद-विवाद की भूमि।किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से संभव है।" पूर्व में जटिल से जटिल समस्या का समाधान मिथिला के नैयायिकों ने किया है।मिथिला के लोक व्यबहार, लोकोक्ति,फकड़ा,किस्से-कहानी का जब आप विशद अध्ययन,अनुशीलन करेंगे तो न्याय शास्त्र की बहुत सी बात आपको स्वतः समझ में आ जायेगी। एक प्रसंग है एकबार मिथिला में क्षयमास पर विद्वानों क बीच वाद -विवाद हो रहा था।मतैक्य नहीं हो पा रहा था। पं.गोकुलनाथ उपाध्याय का मत अन्य सभी विद्वानों के मत से अलग था।वे क्षय मास का विरोध कर रहे थे।तब समाधान के लिए पं.उमापति उपाध्याय को मध्यस्थ बनाया गया।राजा के द्वारा भी उन्हें विवाद समाधान के लिए अधीकृत किया गया। अपनी बृद्धवस्था और नदी में बाढ़ आने के कारण वे शास्त्रार्थ में भाग नहीं ले सके।उन्होंने निम्न पंक्तियां सभा को प्रेषित की-
"हम अति बुढ़ नदी मरखाहि।
एकटा नाव चढ़ल नहि जाहि।।
हो क्षयमास कहै छथि जत।
से सभ थिक काबिराहक मत।।
गोकुलनाथ कहै छथि जैह।
हमरो सम्मति जानबओएह।।
और सभा में विवाद का अंत हो गया।
एक प्रसंग है भारत के महान कवि विद्यपति बारे में।विद्यापति मिथिला के राजा शिवसिंह के राज्याश्रित कवि थे,वे उनके अनन्य मित्र भी थे।एकबार दिल्ली के सुल्तान ने राजा शिव सिंह को बंदी बना लिया विद्यपति अपने राजा को छुड़ाने केलिए सुल्तान के दरबार में चले गए।सुल्तान ने विद्यपति को एक बक्से में बंद कर दिया और कहा एक स्त्री आग जलायेगी आप बिना देखे कविता में सटिक वर्णन करिये।यदि इस दृश्य का सटीक वर्णन कर देंगे तो आपके राजा को छोड़ दिया जायेगा,साथ ही राज्य भी वापस कर दिया जायेगा।
"सजनि, निहुरि फुकु आगि
तोहर कमल भ्रमर मोर देखल,मदन उठल जागि
जौं तोहें भामिनि भवन जयबह,अयबह कओन बेला
जौं एहि संकट सँ जीब बाँचत, होएत लोचन मेला
राजा शिव सिंह बंधन मोचल,तखने सुकवि जिला।"
सुन्दर स्त्री के आग जलाने का एकदम सटीक वर्णन कवि विद्यपति ने कियाऔर सुल्तान की कैद से अपने राजा और राज्य को छुड़ा लाया।ये है मिथिला की ज्ञान परम्परा।
मिथिला के विद्वानों का न्याय और मीमांशा प्रिय विषय रहा है। यहाँ सारे निर्णय तर्क और ज्ञान के आधार पर ही लिए जाते रहे हैं। तुर्क और मुग़ल राज्य से पहले भारत के अधिकांश राजा न्याय व्यवस्था के सञ्चालन के लिए मिथिला के विद्वानों को राज्याश्रय देकर रखते थे या समस्या होने पर विद्वानों को बुलाया जाता थे। मुग़ल सलतनत में न्यायब्यवस्था अमीन और फौजदार चलाते थे ।यदा-कदा वे भी नैयायिकों की मदद लेते थे। अंग्रेजीराज में तो विद्वानों को विधिवत नियुक्त किया जाता था।म.म सचल मिश्र का लिखा हुआ निर्णय आज भी बिहार रिसर्च सोसाइटी में आज भी सुरक्षित है।
अंगेजों को संस्कृत का ज्ञान नहीं था। 1789ई. में पूर्णिया के कलक्टर Henary Thomas Colebrooke ने धमदाहा निवासी म.म.चित्रपति झाऔर म.म.श्याम सुंदर ठाकुर से संस्कृत सीखी। कोलब्रूक की प्रेरणा से कोलकाता में सर विलियम जोन्स कई शीर्षस्थ विद्वानों से न्यायालय के लिए उपयोगी धर्मशाश्त्रों को संग्रहित किया। पहले फ़ारसी में फिर अंग्रेजी में उसका अनुवाद कराया।इसी के आधार पर आज भारतीय दण्ड संहिता(IPC) दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC )व्यवहार प्रक्रिया संहिता(CPC) बनाया गया।आज तक इसी आधार पर भारतीय न्याय प्रणाली काम कर रहा है।अंग्रेजों ने तीन सदंर्भ ग्रन्थ भी चयन किये
1.चंडेश्वर महथा कृत'विवाद रत्नाकर
2.वाचस्पति मिश्र कृत'विवाद चिंतामणि
3.मिशरू मिश्र कृत 'विवादचंद्र '
इसी को आधार मानकर भारतीय संसद ने हिन्दू कोड बिल पास किया।
सम्प्रति मिथिला के लोग अपनी ज्ञान परम्परा से विमुख हुए हैं ,आर्थिक विपन्नता के कारण मिथिला की प्रतिभा यत्र-तत्र भटकने को मजबूर है। जिस भाषा में 800 वर्ष पूर्ब ज्योतिरीश्वर जैसे महान गद्यकार हुए,विद्यापति जैसे महान जनकवि हुए उस भाषा के नौनिहाल मातृभाषा के पठन -पाठन से वंचित है,जो चिंता का विषय है।उससे भी चिंता का विषय है यहाँ के लोग अपनी भाषा और संस्कृति से तीव्रता से विमुख हो रहे हैं,उन्हें अपने धरोहर पर गौरव गरिमा का बोध समाप्त हो रहा है । अपनी प्रतिभा और ऊर्जा को अपनी भूमि पर विकसित होने का अवसर मिले ऐसे वातावारण का हम निर्माण करें जिससे उत्तरोत्तर अपने ज्ञान का उपयोग कर सकें। दुनियां के समक्ष जो संवाद का संकट है, असहिष्णुता का संकट है,उसका निवारण हो सके। ये निर्विवाद है किै दुनियां के वर्तमान संकट का समाधान भारतीय दर्शन में है। भारतीय दर्शन को ढूंढ़ने के लिए आपको जड़ में आना होगा,मिथिला आना होगा।
आइये अयाची प्रसंग पर विमर्श करते हुए आगे बढ़ें नवीन संकल्प, नये अध्याय का सृजन करें।

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